Friday, February 10, 2012

यह उपदेश देने का ही मौसम है और तुम्हारा फर्ज है कोई भी उपदेश न मानना...


जवान होते बेटो!

अष्टभुजा शुक्ल

जवान होते बेटो
इतना झुकना
इतना
कि समतल भी खुद को तुमसे ऊँचा समझे
कि चींटी भी तुम्हारे पेट के नीचे से निकल जाए
लेकिन झुकने का कटोरा लेकर मत खड़े होना घाटी में
कि ऊपर से बरसने के लिए कृपा हँसती रहे
इस उमर में
इच्छाएँ कंचे की गोलियाँ होती हैं
कोई कंचा फूट जाए तो विलाप मत करना
और कोई आगे निकल जाए तो
तालियाँ बजाते हुए चहकना कि फूल झरने लगें
किसी को भीख न देना पाना तो कोई बात नहीं
लेकिन किसी की तुमड़ी मत फोडऩा
किसी परेशानी में पड़े हुए की तरह मत दिखाई देना
किसी परेशानी से निकल कर आते हुए की तरह दिखना
कोई लड़की तुमसे प्रेम करने को तैयार न हो
तो कोई लड़की तुमसे प्रेम कर सके
इसके लायक खुद को तैयार करना
जवान होते बेटो
इस उमर में संभव हो तो
घंटे दो घंटे मोबाइल का स्विच ऑफ रखने का संयम बरतना
और इतनी चिकनी होती जा रही दुनिया में
कुछ खुरदुरे बने रहने की कोशिश करना
जवान होते बेटो
जवानी में न बूढ़ा बन जाना शोभा देता है
न शिशु बन जाना
यद्यपि के बेटो
यह उपदेश देने का ही मौसम है
और तुम्हारा फर्ज है कोई भी उपदेश न मानना...

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