Thursday, February 9, 2012
नीली है रात की आवाज़, मैं अकेला नहीं हूं
रात है और वह अकेली
महमूद दरवेश
रात है और वह अकेली
और मैं उस की तरह अकेला,
उसकी और मेरी मोमबत्तियों के दरम्यान दो ख़ाली मेज़ें हैं
सर्दियों के इस रेस्त्रां में.
हमारे बीच की ख़ामोशी में कोई भी चीज़ बाधा नहीं डालती
वह मुझे नहीं देखती जब मैं ताड़ लेता हूं उसे
अपने सीने से एक ग़ुलाब तोड़ता और मैं उसे नहीं देखता जब वह
ताड़ती है अपनी वाइन से एक चुम्बन की चुस्की लेते.
न वह अपनी डबलरोटी से चूरा गिरने देती है और न मैं कागज़ के मेज़पोश पर
छलकने देता हूं पानी.
हमारे बीच की ख़ामोशी में कोई भी चीज़ बाधा नहीं डालती
वह अकेली है और मैं उसकी ख़ूबसूरती के साथ अकेला हूं. बेवफ़ाई
क्यों साथ नहीं लाती हमें? मैं ख़ुद से पूछता हूं: क्यों न
उसकी वाइन चखी जाए? वह मुझे नहीं देखती जब मैं देखता हूं उसे
टांग पर टांग रखते और मैं नहीं देखता उसे मुझे देखता हुआ जब
मैं अपना कोट उतारता हूं. मेरे भीतर की कोई चीज़ उसे परेशान नहीं करती
न उसके भीतर की कोई चीज़ मुझे - हम
विस्मृति के साथ साम्य में हैं ...
हम दोनों का अलग-अलग भोजन स्वादिष्ट है.
नीली है रात की आवाज़, मैं अकेला नहीं हूं
और वह अकेली नहीं है जब हम दोनों सुनते हैं
उस के स्फटिक को
कोई भी चीज़ बाधा नहीं डालती हमारी रात में
वह नहीं कहती:
प्रेम एक जीवित प्राणी में पैदा होता है
और एक विचार बन जाता है.
और मैं नहीं कहता:
प्रेम एक विचार बन चुका है ...
लेकिन ऐसा लगता तो है.
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महमूद दरवेश
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1 comment:
kya baat hai!
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