चलल चलल चलल चलल
अष्टभुजा शुक्ल की कविता पर एक पोस्ट कुछ दिन पहले लगाई थी. आज उन की एक कविता और पढ़िए-
यजामहे यजामहे
अष्टभुजा शुक्ल
कूच किए ललमुँहे
कि कूद पड़े कलमुँहे
चलल चलल चलल चलल
लुहे लुहे लुहे लुहे !
रात को सियार चुहे
दिन में झट-उखार चुहे
गन्ने के गेंड़ हरे
ढीठ नीलगाय चुहे
भगल भगल भगल भगल
लुहे लुहे लुहे लुहे !
धरती को लोग दुहे
जंगल को लोग दुहे
सेठ क्षीरसागर के
साँड छानकर दुहे
चलल चलल चलल चलल
लेहे लुहे लुहे लुहे !
कुछ रहे बिना, रहे
कुछ बिना रहे, रहे
कुछ बिना कहे, रहे
कुछ बिना सहे, रहे
स्वाहा जजमान्हे
यजामहे ! यजामहे !
1 comment:
ध्वन्यात्मक प्रभाव लिये सामाजिक सत्य..
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