Tuesday, April 3, 2012

वे तब भी निकल पड़ते हैं यात्रा पर



ब्रिटेन में जन्मी अमेरिकी कवयित्री डेनिस लेवेर्तोव (१९२३-१९९७) की एक कविता पेश है –

आदम की शिकायत

कुछ लोग
चाहे आप उन्हें सब कुछ दे दें
तब भी इच्छा करते हैं चंद्रमा की

डबलरोटी
नमक
लाल और सफ़ेद दोनों तरह का मांस
भूख तब भी

शादी का पलंग
और पालना
बाहें तब भी खाली

आप उन्हें ज़मीन दे दें
उनके पैरों के नीचे उनकी अपनी धरती
वे तब भी निकल पड़ते हैं यात्रा पर

और पानी – आप खोद दें उनके लिए सब से गहरा कुआं
लेकिन तब वह उतना गहरा नहीं होता
कि उसमें से चंद्रमा को पिया जा सके.

8 comments:

अरुण अवध said...

मानुषी की असीमित इच्छाओं पर एक सुंदर कविता !

अरुण अवध said...

मानुषी की असीमित इच्छाओं पर एक सुंदर कविता !

राजेश उत्‍साही said...

सचमुच हमारी इच्‍छाएं अनंत हैं।

Ek ziddi dhun said...

आप द्वारा पोस्ट की गई यह प्यारी सी कविता आपको ही समर्पित है अशोक भाई।

Shalini Khanna said...

बहुत अच्छी कविता...इच्छाएं कभी खत्म नही होती.....

Govind Singh(गोविन्द सिंह) said...

शायद इन्हीं इच्छाओं से जीवन चल रहा है. बहुत अच्छी कविता है.

अजेय said...

यह हम सब के साथ है.

abcd said...

kavitaa ko padh kar samazh nahi paaya ki positive tone hai ya negative.

sheershak padh kar aadam aur havva ke baare me sochne laga.

comments ko padh kar lagaa ,positivenote hai kavitaa ka.
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confusion yathaavat hai !!