Sunday, April 22, 2012

जब तेरे नैन मुस्कराते हैं


खान  साहब मेहदी हसन की क्लैसिकल वाली सीरीज़ में चार-पांच प्रस्तुतियाँ अभी बची हुई हैं. आज पेश है अब्दुल हमीद अदम (1910-1981) की गज़ल. अदम साहब अपने ज़माने में खासे लोकप्रिय थे. उन पर एक विस्तृत पोस्ट किसी दिन -

जब तेरे नैन मुस्कुराते हैं
ज़ीस्त के रंज भूल जाते हैं

क्यूँ शिकन डालते हो माथे पर
भूल कर आ गए हम जाते हैं

कश्तियाँ यूँ भी डूब जाती हैं
नाख़ुदा किसलिये डराते हैं

इक हसीं आँख के इशारे पर
क़ाफ़िले राह भूल जाते हैं



1 comment:

मुनीश ( munish ) said...

शराब , आँख के इशारे , शरारे, गरारे । मैं स्थिर चित्त होकर सुनना चाहता हूँ लेकिन..