खान साहब मेहदी हसन की क्लैसिकल वाली सीरीज़ में चार-पांच प्रस्तुतियाँ अभी बची हुई हैं. आज पेश है अब्दुल हमीद अदम (1910-1981) की गज़ल. अदम साहब अपने ज़माने में खासे लोकप्रिय थे. उन पर एक विस्तृत पोस्ट किसी दिन -
जब तेरे नैन मुस्कुराते हैं
ज़ीस्त के रंज भूल जाते हैं
क्यूँ शिकन डालते हो माथे पर
भूल कर आ गए हम जाते हैं
कश्तियाँ यूँ भी डूब जाती हैं
नाख़ुदा किसलिये डराते हैं
इक हसीं आँख के इशारे पर
क़ाफ़िले राह भूल जाते हैं
1 comment:
शराब , आँख के इशारे , शरारे, गरारे । मैं स्थिर चित्त होकर सुनना चाहता हूँ लेकिन..
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