वर्जीनिया में अंग्रेजी की प्रोफ़ेसर रह चुकीं योलांडे कौर्नेलिया “निक्की” जियोवानी अमेरिका की अश्वेत कविता परंपरा को एक कदम आगे ले जाने वाली कवयित्री हैं. ७ जून १९४३ को जन्मी निक्की की कवितायेँ अपनी जातीय जड़ों के लिए गहरी आस्था, परिवार के सम्मान और एक पुत्री, एक्टिविस्ट और माँ के तौर पर हुए अनुभवों के इर्द गिर्द बुनी हुई हैं. आज पेश है उनकी एक कविता.
यह अनुवाद मैं जनाब लाल्टू के लिए समर्पित करता हूँ. निक्की की कुछेक और कवितायेँ यहाँ देखी जाएँगी जल्दी ही.
विकल्प
अगर मैं वह नहीं कर सकती
जो मैं करना चाहती हूँ
तो मेरा काम यह है
कि मैं उसे न करूं जिसे
मैं नहीं करना चाहती
यह ठीक वैसा तो नहीं
लेकिन सबसे अच्छा है
जो मैं कर सकती हूं
अगर मेरे पास वह नहीं हो सकता
जो मुझे चाहिए ... तो मेरा काम
है उसकी इच्छा करना जो मेरे पास है
और संतुष्ट हो रहूँ
की कुछ तो और है
जिसकी इच्छा की जा सकती है
चूंकि मैं वहाँ नहीं जा सकती
जहां मुझे जाना
चाहिए ... तो मुझे ... हर हाल में
वहाँ जाना चाहिए जिसकी तरफ संकेत हो रहा है
अलबत्ता हमेशा यह समझते हुए
कि समानांतर गति
नहीं होती पार्श्व गति
अगर मैं उसे व्यक्त नहीं कर सकती
जो मुझे वाकई महसूस होता है
तो मैं अभ्यास करती हूँ
उसे महसूस करने का
जिसे मैं व्यक्त कर सकती हूँ
मैं जानती हूँ एक बराबर नहीं ये दो बातें
लेकिन यही वजह है कि तमाम पशुओं में
सिर्फ इंसान ही
रोना सीखता है.
2 comments:
This poem is so me!lovely
Great
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