Saturday, April 21, 2012

कब मैंने ये कहा था सज़ाएं मुझे न दो



जनाब मेहदी हसन की शास्त्रीय प्रस्तुतियों की सीरीज़ में अगली प्रस्तुति राग किरवानी में अहमद फराज़ की गज़ल -

शोला था जल बुझा हूँ हवाएं मुझे न दो
मैं कब का जा चुका हूँ सदाएं मुझे न दो 

जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया 
अब तुम तो ज़िंदगी की दुआएं मुझे न दो 

ऐसा कभी न हो के पलट कर न आ सकूँ 
हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो 

कब मुझको ऐतराफ़-ए-मुहब्बत न था 'फ़राज़' 
कब मैंने ये कहा था सज़ाएं मुझे न दो

1 comment:

विभूति" said...

बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.....