शोला था जल बुझा हूँ हवाएं मुझे न दो
मैं कब का जा चुका हूँ सदाएं मुझे न दो
जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया
अब तुम तो ज़िंदगी की दुआएं मुझे न दो
ऐसा कभी न हो के पलट कर न आ सकूँ
हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो
कब मुझको ऐतराफ़-ए-मुहब्बत न था 'फ़राज़'
कब मैंने ये कहा था सज़ाएं मुझे न दो
1 comment:
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.....
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