संजय चतुर्वेदी के संग्रह 'प्रकाशवर्ष' से एक और रचना. अभी आपको उनकी कई और कविताएं पढ़ने को मिलेंगी.
कल
जब भी कोई जवान लड़का गुस्से में चिल्लाता है
बूढ़े दौड़ पड़ते हैं उसकी तरफ़
जैसे उसका गुस्सा खतरा हो
उनकी विद्वत्ता के लिए
कल हमारे बच्चे
हमसे हमारी कविताओं का अर्थ पूछेंगे
और हम उनसे कहेंगे
कि बेटा
अभी आप पढ़िए.
कल
जब भी कोई जवान लड़का गुस्से में चिल्लाता है
बूढ़े दौड़ पड़ते हैं उसकी तरफ़
जैसे उसका गुस्सा खतरा हो
उनकी विद्वत्ता के लिए
कल हमारे बच्चे
हमसे हमारी कविताओं का अर्थ पूछेंगे
और हम उनसे कहेंगे
कि बेटा
अभी आप पढ़िए.
1 comment:
वाह ! वाह !
सच में , संजय भाई डॉक्टर मालूम होते हैं । बहुत सही से नब्ज़ परखते हैं । कल हम वो बच्चे थे , कल हम वो बूढ़े होंगे । दुनिया का कारोबार चलता रहता है ।
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