Sunday, May 27, 2012

हम जहां पहुंचे कामयाब आये - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की आपबीती – ४




(पिछली कड़ी से आगे)

मैं मास्को के बाद लंदन चला गया और लंदन में दो वर्ष तक रहा. मैं लंदन से लाहौर आने के बजाय कराची लौट आया. कराची में मैं मिस्टर महमूद हारून के निवास स्थान पर ठहरा. उनकी बहन जो डाक्टर थीं और मेरी मित्रा थीं, उन्होंने मुझे लिखा कि श्रीमाती हारून बीमार हैं और आपको देखना और मिलना चाहती हैं. मेरे आने पर श्रीमती हारून ने मुझे बताया कि उनका जो फ़लाही फ़ाउंडेशन है उसके अधीन स्कूल, अस्पताल और अनाथालय चल रहा है. उनके लड़के के पास फ़ाउंडेशन चलाने के लिए समय नहीं है क्योंकि वह व्यापार तथा राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त रहे हैं. अच्छा होगा कि फ़ाउंडेशन की व्यवस्था मैं संभाल लूं. मैंने फ़ाउंडेशन के स्थान पर उसकी गतिविधियों का निरीक्षण किया तो देखा कि वह गंदी बस्ती का इलाक़ा था, जहां मछुआरे, ऊंट वाले, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाले और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त व्यक्ति रहा करते थे. मुझे यह इलाक़ा अच्छा लगा, और हमने इस क्षेत्र में अपनी गतिविधि तेज़ कर दी. स्कूल को कॉलेज में परिवर्तित कर दिया, एक तकनीकी संस्थान भी स्थापित किया और अनाथालय की भी व्यवस्था की. इस प्रकार कोई आठ साल तक मैं शैक्षणिक और प्रशासनिक गतिविधियों से जुड़ा रहा. इस बीच 65 और 71 के युद्ध भी हुए. इन दोनों युद्धों के दौरान मैं अत्यधिक मानसिक तनाव से प्रभावित रहा. उसका कारण यह था कि मुझसे बार-बार देशभक्ति के गीत लिखने की फ़रमाइश की जा रही थी. मेरे इनकार पर यह ज़ोर दिया जाता कि देशभक्ति और मातृभूमि की मांग यही है कि मैं युद्ध के या देशभक्ति के गीत लिखूं. लेकिन मेरा तर्क यह था कि युद्ध अनगिनत व्यक्तियों के लिए मृत्यु का कारण बनेगा और दूसरे पाकिस्तान को इस युद्ध से कुछ नहीं मिलने वाला है. इसलिए मैं युद्ध के लिए कोई गीत नहीं लिखूंगा. लेकिन मैंने 65 और 71 के युद्धों के विषय में नज़्में लिखीं, 65 के युद्ध से संबंधित मेरी दो नज़्में हैं....

बांग्लादेश युद्ध के ज़माने में मैंने तीन-चार नज़्में लिखीं. लेकिन उन नज़्मों की रचना में युद्ध-गीतों का आग्रह करने वालों को मुझसे और भी निराशा हुई. परिणामस्वरूप मुझे सिंध में भूमिगत हो जाना पड़ा. युद्ध समाप्त हुआ तो पाकिस्तान के दो टुकड़े हो चुके थे.

चुनाव के बाद फ़ौजी सरकार समाप्त हो गयी थी और भुट्टो के नेतृत्व में पीपुल्स पार्टी की सरकार स्थापित हो चुकी थी. उनसे मेरे अच्छे संबंध थे उस ज़माने में जब वह विदेश मंत्राी थे और उस समय भी जब वह विपक्षी पार्टी के नेता थे. उन्होंने मुझे अपने साथ काम करने के लिए आमंत्रित किया. मैंने पूछा मेरा काम क्या होगा, तो उन्होंने स्पष्ट किया कि मैं पहले से ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदार रह चुका हूं. क्यों न उसी क्षेत्रा में राष्ट्रीय स्तर पर कुछ काम करूं. मैंने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और नेशनल कौंसिल ऑफ़ आर्ट्स (राष्ट्रीय कला परिषद्) की स्थापना की. इसके अतिरिक्त मैंने ‘फ़ोक आर्टस’ जो अब ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ोक हेरिटेज’ है, की स्थापना की. मैं इन परिषदों की देख-रेख में चार साल तक व्यस्त रहा कि सरकार फिर से बदल गयी. इस अवधि में मेरा गद्य और पद्य लिखने का क्रम लगातार जारी रहा. इसी अवधि में मेरी शायरी का अंग्रेज़ी, फ्ऱांसीसी, रूसी तथा अन्य दूसरी भाषाओं में अनुवाद होता रहा. ज़ियाउल हक़ के शासन काल में मेरे प्रभाव को नकार दिया गया. वैसे भी इस सरकार में संस्कृति का महत्व पहले जैसा नहीं रहा था, मैंने सोचा मुझे कुछ और करना चाहिए .

मैं एशियाई और अफ़्रीकी साहित्यकार संगठन के लिए कुछ-न-कुछ करता ही रहता था. उनकी गोष्ठियों में भी भागीदारी होती रहती थी. उस संगठन का दफ़्तर काहिरा में था जहां से उस संगठन की पत्रिका लोटस (Lotus) का प्रकाशन होता था.

(अगली किस्त में समाप्य)