शहर में ऐसा शोर था कि अश्लील साहित्य का बहुत प्रचार हो रहा है. अखबारों में समाचार और नागरिकों के पत्र छपते कि सड़कों के किनारे खुलेआम अश्लील पुस्तकें बिक रही हैं.
दस-बारह उत्साही समाज-सुधारक युवकों ने टोली बनाई और तय किया कि जहां भी मिलेगा हम ऐसे साहित्य को छीन लेंगे और उसकी सार्वजनिक होली जलाएंगे.
उन्होंने एक दुकान पर छापा मारकर बीच-पच्चीस अश्लील पुस्तकें हाथों में कीं. हरके के पास दो या तीन किताबें थीं. मुखिया ने कहा- आज तो देर हो गई. कल शाम को अखबार में सूचना देकर परसों किसी सार्वजनिक स्थान में इन्हें जलाएंगे. प्रचार करने से दूसरे लोगों पर भी असर पडे़गा. कल शाम को सब मेरे घर पर मिलो. पुस्तकें में इकट्ठी अभी घर नहीं ले जा सकता. बीस-पच्चीस हैं. पिताजी और चाचाजी हैं. देख् लेंगे तो आफत हो जाएगी. ये दो-तीन किताबें तुम लोग छिपाकर घर ले जाओ. कल शाम को ले आना.
दूसरे दिन शाम को सब मिले पर किताबें कोई नहीं लाया था. मुखिया ने कहा- किताबें दो तो मैं इस बोरे में छिपाकर रख दूं. फिर कल जलाने की जगह बोरा ले चलेंगे.
किताब कोई लाया नहीं था.
एक ने कहा- कल नहीं, परसों जलाना. पढ़ तो लें.
दूसरे ने कहा- अभी हम पढ़ रहे हैं. किताबों को दो-तीन बाद जला देना. अब तो किताबें जब्त ही कर लीं.
उस दिन जलाने का कार्यक्रम नहीं बन सका. तीसरे दिन फिर किताबें लेकर मिलने का तय हुआ.
तीसरे दिन भी कोई किताबें नहीं लाया.
एक ने कहा- अरे यार, फादर के हाथ किताबें पड़ गईं. वे पढ़ रहे हैं.
दसरे ने कहा- अंकिल पढ़ लें, तब ले आऊंगा.
तीसरे ने कहा- भाभी उठाकर ले गई. बोली की दो-तीन दिनों में पढ़कर वापस कर दूंगी.
चौथे ने कहा- अरे, पड़ोस की चाची मेरी गैरहाजिर में उठा ले गईं. पढ़ लें तो दो-तीन दिन में जला देंगे.
अश्लील पुस्तकें कभी नहीं जलाई गईं. वे अब अधिक व्यवस्थित ढंग से पढ़ी जा रही हैं.
8 comments:
किताबें जलाने का अधिकार भी publisher के पास सुरक्षित होना चाहिए.
plz visit your blog listed here : http://hindibloggerhub.blogspot.in/
Parasai hamesha mujhe ek gussaye hue aadami kee yad deelate hai...
खैर अब तो ये साहित्य देश को ही जला देगा , भस्म कर डालेगा समाज को , कल को ,
आज को, लोक लाज को ....
jabardasht hai ji
waah
jabardast
कहानी आज भी सामयिक है। इसे पढने का एक प्रयास निम्न लिंक पर किया गया है:
अश्लील ऑडियो
http://rajasthanstudy.blogspot.com
यही है हमारे समाज के दोगलेपन की सच्चाई।
Post a Comment