Tuesday, May 8, 2012

क्या पता कल हम समझ सकें जल और वायु का व्यवहार


अगली भाषाओं की तलाश में



संजय चतुर्वेदी

क्या पता लोहे में जीवन हो
पत्थर हों वनस्पति
क्या पता कल हम समझ सकें जल और वायु का व्यवहार
कण-कण से आती बिजली की आवाज़
हो सके बातचीत पत्थरों और पेड़ों से
बढ़ जाए इतनी रोशनी
एक शब्द का हो एक ही अर्थ
दोहरा होना रह जाए पिछड़ेपन की निशानी
क्या पता कविता न रह जाए आज जैसी
आज जहाँ है, वहाँ बस जाएँ बस्तियाँ
और वह निकल जाए अगली भाषाओं की तलाश में

1 comment:

Govind Singh(गोविन्द सिंह) said...

बहुत सुन्दर कविता. संजय चतुर्वेदी के अनुरूप.