हुसैन बंधुओं के अल्बम 'गुलदस्ता' से कल आपने एक कम्पोजीशन सुनी थी. आज उसी से एक और गज़ल -
तू अभी से
वाकिफ़-ए-गम न हो, अभी तेरा अहद-ए-शबाब है
मेरी चश्म-ए-शौक न
देख तू के ये आंसुओं की किताब है
न मेरी नज़र मिला, के
ये इत्तफाक अजीब है
मुझे शौक जाम-ए-शराब
का तेरी आँख जाम-ए-शराब है
तेरे रुख पे जो भी
नज़र पड़ी, वो शुआ-ए-हुस्न से जल गयी
तुझे देख सकता नहीं
कोई, तेरा हुस्न खुद ही नकाब है
जहां दिल खुशी से
झुका मेरा, वहीं सर भी मैंने झुका दिया
मुझे अंजुम इस से
गरज़ ये अजाब है या सवाब है
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