Tuesday, June 12, 2012
पटिलाया घराने के रंग में पगी उस्ताद की भूपाली.
पटिलाला के उस्ताद बड़े गु़लाल अली ख़ाँ साहब संगीतप्रेमियों के चहेते कलाकार हैं.अपनी स्थूल काया से वे जिस तरह के मुलायम स्वर बिखेरते थे वह सुनने वाले को किसी दूसरी दुनिया की सैर करवा देते थे. कहते हैं ख़याल के महान गायक उस्ताद अमीर ख़ाँ साहब और उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब में अपनी गायन शैलियों को लेकर एक तरह का द्वंद था. एक था धीर गंभीर गायक और गहरी तानों का सम्राट तो दूसरा ठुमरी का ऐसा बेजोड़ साधक जो बिजली की गति से अपनी तानों को यहाँ से वहाँ कब ले जाता मालूम ही नहीं पड़ता. भारत-रत्न पं.भीमसेन जोशी ने एक मुलाक़ात के दौरान बताया था कि दोनो महान गायकों में किसी तरह की कटुता नहीं थी और उन्होंने अपनी अपनी तरह से गायकी का मोर्चा संभाल रखा था. पण्डितजी का कहना था कि मूलत:दोनो एकदूसरे के हुनर के प्रशंसक थे और इस बात से वाक़िफ़ थे कि दोनो के गायन से मौसीक़ी की ख़िदमत ही हो रही है.
इन दिनों विविध भारती पर संगीत सरिता कार्यक्रम सुबह ७.३० बजे पं.अजय चक्रवर्ती उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब की गायकी की सुरीली यात्रा करवा रहे हैं. इस कार्यक्रम में अजयजी से बातचीत कर रहे हैं विख्यात उदघोषक मरहूम क़ब्बन मिर्ज़ा साहब. मैंने आज अपने मोबाइल से राग भूपाली में निबध्द विलम्बित और द्रुत दो रचनाओं को रेकॉर्ड कर लिया था जो आप रसिकों से साझा कर रहा हूँ.हो सकता है रेकॉर्डिंग क्वालिटी संतोषजनक न हो;क्षमा करें.ख़ाँ साहब की गायकी को सुने तो वह ज़माना याद आ जाता है जब जीवन में तसल्ली थी. आप सुनिये और महसूस कीजिये कि किस तसल्ली से ख़ाँ साहब राग को बढ़त दे रहे हैं और छोटी छोटी मुरकियों से राग का विस्तार किस ख़ूबसूरती से करते हैं. वे कब नीचे वाले षडज से तार-सप्तक पर चले जाएँगें;बस सोचा नहीं जा सकता,महसूस किया जाता है. बलखाती तानों का ये लावण्य अब कहाँ...सबरंग उपनाम से बंदिशें रचने वाले इस महान स्वर-साधक को सुनना ख़ला से उपज रहे रुहानी जादू को महसूस करना है.
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1 comment:
सर आपसे एक आग्रह है कि कृपया इस ब्लॉग पर सर्च बॉक्स या फिर लेबल का टैग दिखाएँ ताकि मुझे और मेरी तरह अन्य लोगों को अपनी पसंद खोजने में सहूलियत हो. पहले ऐसा था लेकिन ये टेम्पलेट बदलने से गयाब हो गया है.
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