Monday, July 2, 2012

बारिश, गिरो ना !


रचना जापानी कवि शुन्तारो तानीकावा की है. अनुवाद खाकसार का. चित्र वरिष्ठ कबाड़ी रवीन्द्र व्यास का बनाया हुआ -

बारिश, गिरो ना !

गिरो ना बारिश
उन बिना प्यार की गई स्त्री पर
गिरो ना बारिश
अनबहे आंसुओं के बदले
गिरो ना बारिश गुपचुप

गिरो ना बारिश
दरके हुए खेतों पर
गिरो ना बारिश
सूखे कुंओं पर
गिरो ना बारिश जल्दी

गिरो ना बारिश
नापाम की लपटों पर
गिरो ना बारिश
जलते गांवों पर
गिरो ना बारिश भयंकर तरीके से

गिरो ना बारिश
अनंत रेगिस्तान के ऊपर
गिरो ना बारिश
छिपे हुए बीजों पर
गिरो ना बारिश हौले-हौले

गिरो ना बारिश
फिर से जीवित होते हरे पर
गिरो ना बारिश
चमकते हुए कल की खातिर
गिरो ना बारिश आज!

6 comments:

विम्मी सदारंगानी said...

बहुत ही अच्छी कविता, और अनुवाद भी..

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बढ़िया कविता है।

Unknown said...

ati sunder

Unknown said...

wah! kya baat

Unknown said...

kya baat!

Unknown said...

giro na barish