Sunday, August 26, 2012

आप सब की दुआएं काम आईं, उन्मुक्त ने भारत को विश्व चैम्पियन बनाया


अभी थोड़ी देर पहले एक चमत्कारी पारी खेलकर उन्मुक्त ने अंडर\- १९ का विश्व कप भारत के नाम कर दिया.

उन्मुक्त और उसकी पूरी टीम को  बधाई.

कोई दो साल पहले उसके रणजी टीम में चुने जाने पर कबाड़खाने में एक पोस्ट लगाई गई थी. उसे दोबारा यहाँ लगा रहा हूँ.

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आज मेरा सीना चौड़ा होकर दूना हो गया है. लवी यानी उन्मुक्त चन्द, मेरा पुत्र-भ्राता-मित्रसुलभ याड़ी बच्चा आज एक इतनी बड़ी ख़बर ले कर आया है. रहस्य ज़रा बना रहे. बस यह कि नीचे लिखा नोट सुन्दर ठाकुर कबाड़ी का लिखा है.

मैं लवी को धन्यवाद देता हूं. उसके माता-पिता को धन्यवाद देता हूं और सबसे ऊपर अपने सबसे प्यारे यार सुन्दर को कहता हूं "बौफ़्फ़ाइन बेटे! बौफ़्फ़ाइन!!"

लव यू लवी, योर चाचू सेज़ ऑल द बेस्ट टु यू! इतनी ख़ुशी देने का शुक्रिया!


कि रंग लाती है हिना पत्थर पे घिस जाने के बाद

*सुंदर चंद ठाकुर

यह एक बेहद निजी मामला है, मगर मैं अशोक भाई के कहने पर इसे सार्वजनिक कर रहा हूं। वैसे मौका खुशी का है भी, ऐसी खुशी जिसे समेट पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं हो पा रहा। दो घंटे पहले ही खबर मिली है कि उन्मुक्त दिल्ली की रणजी टीम में शामिल कर लिया गया है। वीनू मांकड अंडर-19 टूर्नामेंट में दिल्ली की कप्तानी करते हुए उसने क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल दोनों ही मैचों में लगातार शतक ठोक कर अपनी दावेदारी रखी थी। सेलेक्टरों ने संभवतः उसके पिछले साल का भी रेकार्ड देखा हो। उसने शिखर धवन के साथ ओपनिंग करते हुए रणजी वनडे में पंजाब के खिलाफ 75 रनों की पारी खेली थी।

अब मैं उन्मुक्त के बारे में कुछ और बातें आपसे साझा करना चाहता हूं। उन्मुक्त मेरा भतीजा है यानी बड़े भाई का बेटा. दिल्ली में पला-बढ़ा बच्चा है और चार साल की उम्र से क्रिकेट खेल रहा है। मेरे कुछ साहित्यकार मित्र जानते हैं कि उन्मुक्त के क्रिकेट को लेकर मैं और उसके पापा बचपन से ही पागलपन की हद समर्पित रहे हैं। एक बार जब वह सात साल का था, उसकी सहनशक्ति को बढ़ाने के इरादे से मैं और भाई मई की भरी दोपहर उसे पब्लिक पार्क में ले गए थे और हमने चार घंटे प्रैक्टिस करवाई थी। उस दिन भाई, जो कि अन्यथा बहुत सीधा-सरल और अपेक्षाकृत भीरू है, अपनी बॉलिंग की स्पीड दिखाने पर तुला था। एक बॉल, वह बाकायदा क्रिकेट बॉल थी, मगर साइज में जरा-सी छोटी थी, उन्मुक्त के हेलमेट की ग्रिल से निकलकर सीधे उसकी नाक पर लगी और खून की धार बह चली। मगर उस चोट के बावजूद हम उसे प्रैक्टिस पूरे चार घंटे प्रैक्टिस करवाकर ही लौटे। उन्मुक्त की यही खासियत रही है। उसने प्रैक्टिस से कभी जी नहीं चुराया और दो-दो घंटे बसों में धक्के खाकर भी प्रैक्टिस करने मयूर विहार से भारत नगर जाता रहा।

दिल्ली में स्कूलों और मध्यवर्गीय घरों में बच्चों के करियर को लेकर माता-पिता बहुत चिंतित रहते हैं। उन्मुक्त के साथ भी ऐसा था। मैं आजमाना चाहता था कि अगर एक लक्ष्य चुनकर पूरी ताकत और समर्पण के साथ उसे हासिल करने की कोशिश की जाए, तो वह हासिल होता है या नहीं। लेकिन उन्मुक्त के दसवीं तक आते-आते मुझे भी डर लगने लगा। अगर क्रिकेटर नहीं बन पाया तो! तब यह फेसला किया गया कि क्रिकेट के साथ उसकी पढ़ाई को भी बराबर महत्व दिया जाए। इस मामले में मैं उन्मुक्त को सलाम करूंगा। उन्मुक्त चौदह साल की उम्र में दिल्ली की अंडर-15 टीम में आ तो गया था, मगर उसे एक ही मैच खेलने को मिला, जिसमें वह कुछ खास नहीं कर पाया। तब हमें दिल्ली क्रिकेट की राजनीति समझ में आई क्योंकि उन्मुक्त ने दो साल लगातार टायल मैचों में सबसे ज्यादा रन बनाए थे। मगर उसके दिल्ली अंडर-15 टीम में आने से मुझे बहुत राहत मिली। जिस साल उन्मुक्त को दसवीं का बोर्ड देना था, उस साल नियम बदले और बीसीसीआई ने अंडर-15 के बदले अंडर-16 शुरू कर दिया। इस साल भी टायल मैचों में उन्मुक्त ने सबसे ज्यादा रन बनाए, मगर उसका फिर भी टीम में सेलेक्शन नहीं हुआ। मैं गुस्से में फनफनाया तब उन्मुक्त की अब तक अखबारों में छपी खबरों की पूरी फाइल लेकर सीधे डीडीसीए के प्रेजिडेंट अरूण जेटली जी से मिला। उनके हस्तक्षेप से उन्मुक्त को तीसरे मैच में खेलने का मौका मिला। इसके बाद तो उन्मुक्त ने दिल्ली की ओर से रन बनाने का ऐसा सिलसिला शुरू किया कि इस साल उसे अंडर-19 की कप्तानी ही दे दी गई। मगर वह पढ़ाई को बराबर तवज्जो देता रहा और दसवीं के बोर्ड में महज डेढ़ महीने की तैयारी के बावजूद 83 फीसदी अंक लेकर आया।

उन्मुक्त की एक ओर खासियत उसका नेचर है। उसे मैंने जब जो कहा उसने किया। ऐसे बच्चे किसी को कम ही मिलते हैं। पिछले साल एक दिन वह दस किलोमीटर भागा, क्योंकि मुझे लग रहा था कि उसका वजन बढ़ने से उसके मूवमेंट धीमे हो रहे हैं। मैं अपने साहित्यकार मित्रों से भी उसे मिलाता रहा हूं। विष्णु खरे की कविता कवर डाइव मैंने उसे पढ़कर सुनाई। वे जब भी मेरे घर आए मैंने उन्मुक्त को उनसे जरूर मिलाया। मेरे साहित्यिक लगाव ने उसे ज्ञानरंजन की कहानी अमरूद का पेड़ पढ़ने को मजबूर किया। अशोक के साथ उसका और भी गजब का रिश्ता है। अशोक हर बार उसे चुनौती देकर जाता- इतने रन बनाएगा तो ये दूंगा, वो दूंगा। उसे इसका नुकसान भी उठाना पड़ा है। पिछले साल उसे उन्मुक्त को 18000 का मोबाइल देना पड़ा और इस साल लगता है कि वह लैपटॉप हारने वाला है। पिछले महीने दिल्ली में उसने लैपटॉप के लिए उन्मुक्त के सामने अंडर-19 में तीन सेंचुरी मारने की शर्त रखी थी। उन्मुक्त अब तब दो सेंचुरी मार चुका है। हालांकि एक में वह 96 पर आउट हो गया। 15 को उन्मुक्त फाइनल खेल रहा है। अगर इसमें सेंचुरी लग गई तो अशोक को 30000 की चपत लगनी तय है। वैसे वह उदार है। हर बार दो पैग पीने के बाद उन्मुक्त की पिछली कामयाबियों से खुश होकर उसे हजार-दो हजार रूपये तो थमा ही देता है।

खत्म करने से पहले उन्मुक्त के बारे में कुछ और बातें - कि वह किताबें पढ़ता है। अशोक ने उसे दसियों किताबें दी हैं। बड़े भाई ने उसके लिए पूरी लाइब्रेरी ही बना दी है। वह पिछले कई सालों से डायरी भी लिखता है। मुझे हमेशा लगा है कि लिखने की आदत डालने के लिए डायरी लेखन सबसे बेहतरीन तरीका है। खुद मैंने 14 साल बिना एक दिन छोड़े डायरी लिखी। बहरहाल, क्रिकेट और उन्मुक्त की बात की जाए। उन्मुक्त के समर्पण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 7 साल की उम्र से अब तक एग्जाम्स के दिनों के अलावा शायद ही कोई दिन होगा जब उसने बैट नहीं पकड़ा हो। उसे इस समर्पण के लिए मैं सौ में से सौ नंबर देता हूं और उम्मीद करता हूं कि वह सिर्फ अच्छा क्रिकेटर नहीं, एक पढ़ा-लिखा, समाज के प्रति दायित्वों को समझने वाले इंसान बने। मित्रों से भी उसके लिए ऐसी शुभकामना की अपेक्षा करता हूं।

फिलहाल इतना ही।


तस्वीरें क्रमशः

१. पांच साल का लवी
२. डीपीएस नोएडा में चेतन चौहान से बैस्ट बैट्समैन का खिताब लेते हुए
३. दिल्ली डेयरडेविल्स के साथ प्रक्टिस मैच २००९
४. चचा सुन्दर के साथ
५, १३ साल का था जब उसे बिशन बेदी ऑस्ट्रेलिया ले गए
६. आज की ताज़ा तस्वीर - मॉडर्न स्कूल का बेस्ट स्पोर्ट्समैन
७. कोटला मैदान विराट कोहली के साथ
८. २००९ में इंग्लैण्ड - दिल्ली अंडर-१९ का दौरा
९. एन सी ए बैंगलोर में वीवीएस के साथ सितम्बर २०१०
















11 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

हम सबके लिये प्रसन्नता का दिन है..

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

उन्मुक्त को बधाई। अब वह ऐसे परिचय का मोहताज नहीं रहा। सीनियर टीम में चयन हेतु शुभकामनाएँ।

अनूप शुक्ल said...

बहुत-बहुत बधाई उन्मुक्त को और उसके परिवार वालों को। अशोक जी ऐसे ही शर्तें हारते रहें। :)

sanjay vyas said...

इस चैम्पियन खिलाड़ी और पूरी चेम्पियन टीम को बधाई.

संजय @ मो सम कौन... said...

just watching on tv & I was recollcting an old post at this blog, just checked to make sure this is the same Unmukt. vow.
badhaai ho bahut bahut aap sabko.

मन्टू कुमार said...

ऐसे जज्बे को सलाम....
आज के लिए बधाई,,,और उनके भविष्य के लिए शुभकामनाएँ...:)

मेरा ब्लॉग आपके इंतजार में,समय निकाल के एक नज़र दौडाइएगा-
"मन के कोने से..."
आभार...

प्रवीण said...

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उन्मुक्त को बधाई, आपको व परिवार के अन्यों को भी...

ईयन चैपल ने कहीं लिखा है कि उसे व हरमीत को अंडर १९ तक ही सीमित रखना प्रतिभा को बेकार करना है... आशा है जल्द ही वह धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया में खेलता दिखेगा हम सबको... एडवांस में शुभकामनायें इसके लिये भी...




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Satish Chandra Satyarthi said...

वाह.. बधाई.... देश का गर्व है अब तो उन्मुक्त...

जीवन और जगत said...

भारत भाल को ऊँचा करने वाले उन्‍मुक्‍त चन्‍द एवं उनकी टीम को मेरी ओर से भी बधाई।

VIMAL VERMA said...

अशोक भाई आपके व्यक्तित्व का एक और पहलू भी हमारे सामने आया है जो सुखद है,उन्मुक्त को हमारी भी शुभकामनाएं!!

वीरेन डंगवाल said...

badhai ashok,bahut bahut badahai sunder-unmukta ko mai tumhari ppersonal charitrik kasauti ke bataur bhi dekhta hun. ye baalak aur se aur kirtimaan rachega. .hamari ateev shubhkaamnayen