Wednesday, September 5, 2012

एक दिन तुम आना

कोई बीस साल पुरानी एक डायरी आज पुराने कागजों में मिली. उसके पहले पन्ने पर किसी पत्रिका में छपी कात्यायनी की यह कविता उतारी गयी थी. पेश करता हूँ -


 एक दिन तुम आना 

एक दिन तुम आकर पीछे से चिल्ला देना
जोर से डरा देना
एकदम चकित कर देना
फिर उद्दाम खुशी से भर देना-

एक दिन तुम बताना रंग-बिरंगे फूलों के बारे में
धूप ऑर पत्तियों के बारे में
बताना देस-देस के पक्षियों के बारे में
झरनों, हिमपात
ऑर पहाड़ों-सागरों के बारे में
मेरा मत पूछना.
एक दिन तुम बताना क्रांतियों ऑर वर्ग-संघर्षों के बारे में
एक दिन तुम बताना
क्रांति की समस्याओं के बारे में
जीने के सलीक़े के बारे में
अपनी जद्दोजहद के बारे में
मेरी कमजोरियों के बारे में.

एक दिन फिर तुम बताना
तुमने मुझे कैसे पसंद कर लिया
बताना कि मुझे कितना प्यार करते हो
बताना कि कितना-कितना याद करते हो

एक दिन फिर तुम बताना
तुम क्या जानते हो, मैं तुम्हें कितना प्यार करती हूँ
फिर  भी यह सब कुछ नया होगा मेरे लिए
जैसे पहली बार घटित होगा यह क्षण
जैसे पहली बार होगी एक अजूबी अनुभूति.
तुम मुझे बताना उनके बारे में 
जिन्हें तुम बेहद प्यार करते हो
तुम बताना
लोगों की तकलीफ़देह ज़िन्दगी और 
भारी उथल-पुथल की ओर जाती हुई
दुनिया के बारे में.

एक दिन तुम आना
और ऐसे ही करना
वह सब कुछ फिर से दुहराना
जो हर दम नया होता है
वह सब कुछ बताना
जो ज़रूरी है
हम लोगों की इस ज़िन्दगी में.

No comments: