सत्तर के दशक में देश
में आई श्वेत क्रांति के जनक और शिल्पी वर्गीज़ कुरियन का आज तड़के निधन हो गया.
कुरियन ने यह उपलब्धि ऐसे समय में हासिल की थी जब भारत खाद्य सुरक्षा को लेकर कई
तरह की चिंताओं से रू-ब-रू था.
१९६५ से १९९८ तक नेशनल
डेयरी डेवेलपमेंट बोर्ड के संस्थापक अध्यक्ष रह चुकने के अलावा उन्होंने गुजरात को
ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडेरेशन लिमिटेड के चेयरमैन का पद १९७३ से २००६ तक
सम्हाला.
देश के सबसे बड़े
ब्रांडों में से एक अमूल उन्हीं की परिकल्पना थी. अमूल की सफलता के अध्ययन को आज
दुनिया भर के प्रबंधन संस्थानों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा चुका है.
२६ नवम्बर १९२१ को
कोज़ीकोड में जन्मे कुरियन तमाम तरह की डिग्रियां लेने के बाद भारत सरकार की एक छात्रवृत्ति
पाकर डेयरी इंजीनियरिंग पढने मिशिगन गए. वहां से लौटने के बाद उन्हें सरकार को छात्रवृत्ति
के बदले लिखे गए एक बौंड के मुताबिक कुछ समय के लिए गुजरात के आणंद भेजा गया जहाँ
एक छोटा-मोटा दुग्ध को ऑपरेटिव कार्यरत था.
कुरियन को अपने बौंड
की अवधि समाप्त हो जाने की जल्दी थी ताकि वे जल्दी से बम्बई जाकर पैसा कमाना शुरू
करें. छः महीने में सरकारी अनुमति आ भी गई. कुरियन का सामान बंध चुका था. इन छः
महीनों में उनकी मित्रता कैरा जिला को ऑपरेटिव दुग्ध उत्पादक संघ के अध्यक्ष
त्रिभुवनदास पटेल से हो गई थी. पटेल ने कुरियन से कुछ दिन और रहकर उनकी सहायता
करने का आग्रह किया. कुरियन इस बात पर सशर्त राजी हो गए.
यहाँ बताना ज़रूरी है
कि इन त्रिभुवनदास पटेल को उनके जान-पहचान के लोग अमूल कहकर बुलाते थे.
... उसके बाद क्या
हुआ वह एक पूरा इतिहास है.
1 comment:
प्रो0 एम0एस0 स्वामीनाथन ने हरित क्रान्ति के क्षेत्र में जो कार्य किया, वही श्री कुरियन ने दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में करके दिखाया। देश इन महापुरुषों को नहीं भूल सकता। मेरी ओर से श्री कुरियन को भावभीनी श्रद्धांजलि।
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