Monday, September 24, 2012

मैं जो बोला तो कहा के ये आवाज़ उसी खानाखराब की सी है


उस्ताद बड़े गुलाम अली खां के छोटे भाई थे उस्ताद बरकत अली खां. उन्होंने पहले अपने वालिद उस्ताद अली बख्श खां से और बाद में अपने बड़े भाई से संगीत सीखा. पटियाला घराने के लिए उनका असमय निधन एक बड़ा नुकसान था जब वे कुल सत्तावन की आयु में अल्लाह के प्यारे हुए. यहाँ इस बात का ज़िक्र अप्रासंगिक नहीं होगा की आज के मशहूर ग़ज़ल गायक ग़ुलाम अली को उन्होंने ही प्रशिक्षित किया था.

उस्ताद बरकत अली खां की गई ख़ुदा-ए-सुखन मीर तक़ी मीर की विख्यात ग़ज़ल –



हस्ती अपनी हुबाब की सी है
ये नुमाइश सराब के सी है

नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिये
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है

बार-बार उस के दर पे जाता हूँ
हालत अब इज़्तिराब की सी है

मैं जो बोला तो कहा के ये आवाज़
उसी खानाखराब की सी है

'मीर' उन नीमबाज़ आँखों में
सारी मस्ती शराब की सी है

1 comment:

मुकेश पाण्डेय चन्दन said...

bahut khoob ........ek nayi jankari se awagat hua ! shukriya !