Monday, September 17, 2012

जो तुमने कहा और फैज़ ने जो फरमाया है ... सब माया है


इब्ने इंशा जी की मशहूर रचना सलमान अल्वी की आवाज़ में. अल्वी साहब ने पूरी नज़्म नहीं गाई. मैं आपके वास्ते पूरी रचना यहाँ लगाए दे रहा हूँ -



सब माया है
सब माया है
सब ढलती फिरती छाया है

इस इश्क़ में हमने जो खोया जो पाया है
जो तुमने कहा और फैज़ ने जो फ़रमाया है

सब माया है

हाँ गाहे गाहे दीद के दौलत हाथ आए
या एक वो लज्जत नाम है जिस का रुसवाई

बस उसके सिवा तू जो भी सवाब कमाया है
सब माया है

इक नाम तू बाक़ी रहता है, गर जान नहीं
जब देख लिया इस सौदे में नुकसान नहीं

तब शमा पे देने जान पतंगा आया है
सब माया है

क्यूँ दर्द के नामे लिखते लिखते रात करूँ
जिस सात समंदर पार के नार की बात करूँ

उस नार से कोई एक ने धोका खाया है
सब माया है

मालूम हमें, कैस मियाँ का क़िस्सा भी
सब एक ही हैं, ये रांझा भी, ये इंशा भी

फरहाद भी, जो एक नहर सी खोद के लाया है
सब माया है

जिस गोरी पे हम एक ग़ज़ल हर शाम लिखें
तुम जानते हो - हम क्यूंकर उस का नाम लिखें


दिल उस की चौखट चूम के वापिस आया है
सब माया है

वो लड़की भी जो चाँद नगर की रानी थी
वो जिस के अल्हड़ आँखों में हैरानी थी

आ, उसने भी पैगाम यही भिजवाया है
सब माया है

जो लोग अभी तक नाम वफा का लेते हैं
वो जान के धोखे खातें , धोखे देतें है

हाँ , ठोक बजा के हमने हुकम लगाया है
सब माया है

जब देख लिया हर शख़्स यहाँ हरजाई है
इस शहर से दूर - एक कुटिया हम ने बनाई है

और उस कुटिया के माथे पर लिखवाया है
सब माया है

(चित्र- ख्यात चित्रकार रामकुमार की एक पेंटिंग)

2 comments:

Rector Kathuria said...

अशोक पण्डे जी....इन्शा का नाम आज इस उम्र में भी बहुत कुछ भुला देता है.....उम्र के पहिये को उल्टा घुमा कर फिर से लौटे दिनों को सामने ला देता है...लगता है इन्शा जी भी किसी मायावी से कम नहीं रहे होंगें....!
उनकी इतनी अच्छी रचना शेयर करने के लिए धन्यवाद.....! कुछ पंक्तियाँ इस रचना की माया के प्रभाव में लिख गया....
जहाँ दिल के छिपे खजाने हैं,
जहाँ सब सच्चे अफसाने हैं,
क्यूं कहते हो कबाड़ उसे ?
जहाँ फूलों से वीराने हैं !
वो चाचा है या ताया है,
सबने इक गीत ही गाया है,
इन्शा ने सच फ़रमाया है;
सब माया है सब माया है.

Avinash Das said...

http://youtu.be/eLum5ej42SA