Friday, September 7, 2012

ये उसी बादशाह की कहानी है

अब्बास अतहर (जन्म १९३९) पाकिस्तान के जाने माने पत्रकार, लेखक, स्तंभकार और कवि हैं. लाहौर और सरगोधा में उनकी तालीम का सिलसिला हुआ और उन्होंने बतौर सहाफ़ी और शायर अपनी मज़बूत जगह बनाई है. फिलहाल वे ‘डेली एक्सप्रेस’ के मुख्य संपादक हैं. २०११ में उन्हें हिलाल-ए-इम्तियाज़ की पदवी से सम्मानित किया गया.

उनकी एक मशहूर नज़्म –



एक था बादशाह


ये उस बादशाह की कहानी है
जिसकी हिदायत पे
ख़िलक़त ख़ुदा को ख़ुदा मानती थी
और उस पार सितारे बहुत मेहरबां थे
उसी बादशाह के ज़माने में देखा गया
जो ख़ुदा से न डरते थे
इक उसकी आवाज़ पे
अगले ही रोज़
हर जेलखाने में, थाने में और दफ्तरों में
सफ़े बाँध सिजदे में गिर गए
और जो रिश्वतें लेते और ज़ुल्म करते थे
हर रोज़, अपने गुनाह बख्शवाने लगे
बादशाह ख़ुश रहा और ख़ुदा ख़ुश रहा
और उसने बताया
ख़ुदा बस ख़ुदा है
वो आशिक़, न माशूक़ है और न महबूब है
वो ज़मीनों का आसमानों का
और सारे जहानों का मालिक है
और ज़ाबतों के मुताबिक़ ये दुनिया चलता सज़ाएँ सुनाता है
और रहम की कोई दरख्वास्त सुनता नहीं है

ये उसी बादशाह की कहानी है
जिसके ज़माने में चौराहे पार फांसियां दी गईं
और आधी रिआया की जेलों में उम्रें कटीं
जो कोई सर उठाकर चला
उसकी गर्दन कटी
जो अलम ले के निकला
वो बाज़ू कटाए हुए घर को निकला
जो बोला, ज़बां कट गयी
जिस किसी ने कहा – ज़ुल्म होता है
उसको ज़मीं से रिहाई दिलाई गयी कि वो ख़ुद जाकर
अपनी तसल्ली करे और आँखों से देखे
ख़ुदा आसमानों पे ख़ुश है
न होता तो ये शान-ओ-शौकत न देता
ये ताक़त न देता
ये इंसाफ़ करने की मुहलत न देता
और लोग कहते हैं
उस बादशाह को ख़ुदा के बहुत उम्र दी
जिस क़दर साल और जितनी सदियाँ ज़मीनों से गुजरीं
वो हर एक में मौजूद था, अब भी मौजूद है
और सितारे भी उस पर बहुत मेहरबां हैं.

(ख़िलक़त - सृष्टि, सफ़े - क़तारें, ज़ाबतों - कानूनों, अलम - झंडा) 

1 comment:

Ek ziddi dhun said...

बहुत अच्छी कविता है, अशोक भाई। पाकिस्तान का भी, हमारा भी, पूरी दुनिया का मंजर बयान करने वाली कविता।