पेश है जल सत्याग्रह पर आलोक अग्रवाल की यह रिपोर्ट:
कंपनियों के लिए है ज़मीन विस्थापितों के लिए नहीं
पिछले कुछ वर्षों में मध्य प्रदेश सरकार ने २.५ लाख एकड़ ज़मीन पूंजीपतियों और कंपनियों को प्रस्तावित की है. और हर वर्ष सरकार इस बात की खुली घोषणा करती है की पूरी दुनिया से पूंजीपति आयें और मध्य प्रदेश में निवेश करें. लेकिन इसी मध्य प्रदेश सरकार ने हमेशा विस्थापितों को ज़मीन देने से इंकार किया है और उच्च और सर्वोच्च न्यायालय में यह तर्क दिया है की ज़मीन उपलब्ध नहीं है. इससे यह साफ़ हो जाता है की मध्य प्रदेश सरकार के पास पूंजीपतियों के लिए ज़मीन है लेकिन विस्थापितों के लिए नहीं.
ग्लोबल इन्वेस्टर मीट में उठाया जायेगा विस्थापितों का मुद्दा
२८-२९-३० अक्टूबर २०१२ को इंदौर में हो रहे ग्लोबल इन्वेस्टर मीट में भी मध्य प्रदेश सरकार दुनिया भर से आये निवेशकों को मध्य प्रदेश में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगी, और बाताएगी की किस प्रकार वे मध्य प्रदेश में कम दामों पर ज़मीन खरीद कर अपने नए उद्योग की शुरुआत कर सकते हैं. अगर सरकार ने विस्थापितों की ज़मीन के बदले ज़मीन की मांग को नहीं सुना, तो वहां पर इस मुद्दे को उठाया जाएगा और निवेशकों के सामने यह घोषणा की जायेगी की वे मध्य प्रदेश में तब तक ज़मीन न खरीदें जब तक विस्थापितों को अपने अधिकार के अनुसार ज़मीन नहीं दी जाती.
जल सत्याग्रह १३वें दिन भी जारी, देश भर से समर्थन
घोघल गाँव में चल रहा जल सत्याग्रह १३वें दिन भी जोर शोर से जारी रहा! विस्थापितों की इस लड़ाई को देश भर से समर्थन मिल राहा है. परसों दिल्ली में सर्वोच्च न्यायालय के वकील एवं वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण के नेतृत्व में मध्य प्रदेश भवन के सामने विरोध प्रदर्शन हुआ. कल भोपाल में वन्दे मातरम चौराहे पर अनिल सदगोपाल के नेतृत्व में मुस्कान, संगिनी, एन. आई. डब्लू. सी. वाई.डी जैसी संस्थाओं ने मिलकर एक अनोखा प्रदर्शन किया. इसमें कुछ लोगों ने लाश बनकर दर्शाने का प्रयास किया कि सरकार का बिना पुनर्वास लोगों को डुबाना, और आपनी ज़मीन से भगाना उन्हें मारने के बराबर है.
देश के नागरिकों से अपील
मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में स्थित ओंकारेश्वर एवं इंदिरा सागर बांध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले एवं पुनर्वास नीति की अवहेलना करते हुए जलस्तर बढ़ाए जाने के बाद ओंकारेश्वर बांध क्षेत्र स्थित घोघलगांव में नर्मदा बचाओ आंदोलन की वरिष्ठ कार्यकर्ता चित्तरूपा पालित के नेतृत्व में ३४ बांध प्रभावित जलसत्याग्रह हेतु विगत २५ अगस्त से पानी में प्रवेश कर गए हैं। पिछले सप्ताह भर से लगातार पानी में रहने की वजह से सत्याग्रहियों के अंग खासकर पैरों का गलना प्रारंभ हो गया है।
गौरतलब है कि शासकीय कंपनी एनएचडीसी पिछले कई वर्षों से विद्युत उत्पादन प्रारंभ कर चुकी है और इस दौरान उसने सैकड़ों करोड़ रुपए का आर्थिक लाभ भी कमाया है। लेकिन वह पुनर्वास नीति के अनिवार्य प्रावधान कि परिवार के वयस्क सदस्य को जमीन के बदले जमीन दे, का पालन नहीं कर रही है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक अंतरिम निर्णय में इंदिरा सागर बांध से बेदखल होने वालों के लिए भी जमीन के बदले जमीन के सिद्धांत को स्वीकार कर इस संबंध में मध्यप्रदेश शासन को निर्देश भी दिए हैं।
कंपनियों के लिए है ज़मीन विस्थापितों के लिए नहीं
पिछले कुछ वर्षों में मध्य प्रदेश सरकार ने २.५ लाख एकड़ ज़मीन पूंजीपतियों और कंपनियों को प्रस्तावित की है. और हर वर्ष सरकार इस बात की खुली घोषणा करती है की पूरी दुनिया से पूंजीपति आयें और मध्य प्रदेश में निवेश करें. लेकिन इसी मध्य प्रदेश सरकार ने हमेशा विस्थापितों को ज़मीन देने से इंकार किया है और उच्च और सर्वोच्च न्यायालय में यह तर्क दिया है की ज़मीन उपलब्ध नहीं है. इससे यह साफ़ हो जाता है की मध्य प्रदेश सरकार के पास पूंजीपतियों के लिए ज़मीन है लेकिन विस्थापितों के लिए नहीं.
ग्लोबल इन्वेस्टर मीट में उठाया जायेगा विस्थापितों का मुद्दा
२८-२९-३० अक्टूबर २०१२ को इंदौर में हो रहे ग्लोबल इन्वेस्टर मीट में भी मध्य प्रदेश सरकार दुनिया भर से आये निवेशकों को मध्य प्रदेश में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगी, और बाताएगी की किस प्रकार वे मध्य प्रदेश में कम दामों पर ज़मीन खरीद कर अपने नए उद्योग की शुरुआत कर सकते हैं. अगर सरकार ने विस्थापितों की ज़मीन के बदले ज़मीन की मांग को नहीं सुना, तो वहां पर इस मुद्दे को उठाया जाएगा और निवेशकों के सामने यह घोषणा की जायेगी की वे मध्य प्रदेश में तब तक ज़मीन न खरीदें जब तक विस्थापितों को अपने अधिकार के अनुसार ज़मीन नहीं दी जाती.
जल सत्याग्रह १३वें दिन भी जारी, देश भर से समर्थन
घोघल गाँव में चल रहा जल सत्याग्रह १३वें दिन भी जोर शोर से जारी रहा! विस्थापितों की इस लड़ाई को देश भर से समर्थन मिल राहा है. परसों दिल्ली में सर्वोच्च न्यायालय के वकील एवं वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण के नेतृत्व में मध्य प्रदेश भवन के सामने विरोध प्रदर्शन हुआ. कल भोपाल में वन्दे मातरम चौराहे पर अनिल सदगोपाल के नेतृत्व में मुस्कान, संगिनी, एन. आई. डब्लू. सी. वाई.डी जैसी संस्थाओं ने मिलकर एक अनोखा प्रदर्शन किया. इसमें कुछ लोगों ने लाश बनकर दर्शाने का प्रयास किया कि सरकार का बिना पुनर्वास लोगों को डुबाना, और आपनी ज़मीन से भगाना उन्हें मारने के बराबर है.
देश के नागरिकों से अपील
मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में स्थित ओंकारेश्वर एवं इंदिरा सागर बांध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले एवं पुनर्वास नीति की अवहेलना करते हुए जलस्तर बढ़ाए जाने के बाद ओंकारेश्वर बांध क्षेत्र स्थित घोघलगांव में नर्मदा बचाओ आंदोलन की वरिष्ठ कार्यकर्ता चित्तरूपा पालित के नेतृत्व में ३४ बांध प्रभावित जलसत्याग्रह हेतु विगत २५ अगस्त से पानी में प्रवेश कर गए हैं। पिछले सप्ताह भर से लगातार पानी में रहने की वजह से सत्याग्रहियों के अंग खासकर पैरों का गलना प्रारंभ हो गया है।
गौरतलब है कि शासकीय कंपनी एनएचडीसी पिछले कई वर्षों से विद्युत उत्पादन प्रारंभ कर चुकी है और इस दौरान उसने सैकड़ों करोड़ रुपए का आर्थिक लाभ भी कमाया है। लेकिन वह पुनर्वास नीति के अनिवार्य प्रावधान कि परिवार के वयस्क सदस्य को जमीन के बदले जमीन दे, का पालन नहीं कर रही है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक अंतरिम निर्णय में इंदिरा सागर बांध से बेदखल होने वालों के लिए भी जमीन के बदले जमीन के सिद्धांत को स्वीकार कर इस संबंध में मध्यप्रदेश शासन को निर्देश भी दिए हैं।
(संघर्ष संवाद http://www.sangharshsamvad.org से साभार ली गयी इस पोस्ट को आप सब अपने ब्लॉग,
वेबसाईट, फेसबुक, ट्विटर अकाउंट्स पर जगह देने का कष्ट करें. फिलहाल तो इतना भी
काफ़ी होगा.)
2 comments:
I support this movement.
Jay Hind.
अशोक भाई, माफ कीजिए, लिंक देने के बजाय पूरा लेख कॉपी करके फेसबुक पर लगाया है। ताकि वहां भी पूरा पढ़ लिया जाए। शायद नई दुनिया की हरामखोर नीतियों को लेकर लोगों की नींद टूटे।
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