Thursday, November 8, 2012

डर सबसे पहले दुनियादार आदमी के हृदय में प्रवेश करता है


कुमार अम्बुज के संग्रह ‘किवाड़’ से एक कविता प्रस्तुत है.

दुनियादार आदमी
-कुमार अम्बुज

उसके पास वक़्त होता है
कि वह सबसे नमस्कार करता हुआ पूछ सके-
'कहो, कैसे हो?'
पड़ोसी के दुख के बारे में
वह मुस्कराकर जानकारी लेता है
उसके पास सुन्दर उजले शब्द होते हैं

कुछ खाते होते हैं बैंक में उसके
और कुछ बीमा-पॉलिसी

कभी-कभी वह संगीत के बारे में बात करता है
नृत्य में जाहिर करता है अपनी रुचि
रामलीला दुर्गापूजा के लिए देता है चंदा
वह तपाक से हाथ मिलाता है कहता है-
'आपसे मिलकर ख़ुशी हुई !'

हिसाब लगाकर वह जमीन खरीदता है
फिर थोड़े-से शेयर्स
बनवाता है आभूषण
कुछ पैसा वह घर की अलमारी में बचा रखता है
लॉकर के लिए लगाता है बैंक में दरख़्वास्त
कार खरीदते हुए
पत्नी की तरफ़ देखकर मुस्कराता है
सोचता है ज़िन्दगी ठीक जा रही है
सफल हो रहा है मानव-जीवन
और इस सब कुछ ठीक-ठाक में
एक दिन दर्पण देखते हुए दुनियादार आदमी
अपनी मृत्यु के बारे में सोचता है
और रोने लगता है

डर सबसे पहले
दुनियादार आदमी के हृदय में
प्रवेश करता है

1 comment:

Vandana Ramasingh said...

डर सबसे पहले
दुनियादार आदमी के हृदय में
प्रवेश करता है

सच है