Thursday, November 8, 2012

बाउल तान बरास्ते लालन फकीर



 चार्ल्स कैपवेल ने बाउलों के बारे में कहा कि अगर हमारे पास बॉब डिलन हैं तो उनके पास बाउल हैं। बाउल बंगाल के जमीनी गायक-नायक रहे हैं। बाउल-गान में बराबरी की एक अद्भुत जमीन है, जो लोक को लुभाती है, उनकी चेतना को विकसित करती है। यह चेतना उन्हें और उनके गायन को भक्ति काल के निरगुनियों से जोड़ देती है। ऊंच-नीच की दुनिया से अलग ये गीत हमें एक यूटोपिया में ले जाते हैं। 

 लालन फकीर न जाति चीन्हते हैं, न बड़ा-छोटा। न ऊंच-नीच, न भेद-भाव। वे अपने प्यारे के रंगों में अठखेलियाँ करने वाले संत थे। उस जगह से ये दुनियावी छल-कपट भुनगे जैसे दीखते हैं। कई आधुनिक कवियों, मसलन  रवीन्द्र, नज़रुल और गिंसबर्ग पर उनका साफ असर है। 
  
आइये, आज चलते हैं सुनते हैं पूर्णचंद्र दास के सुरों में लालन फकीर का एक गीत -

 
और दूसरा पारंपरिक बाउल गीत-


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