Sunday, December 23, 2012

पत्थर की बैंच


पत्थर की बैंच
चंद्रकांत देवताले
पत्थर की बैंच
जिस पर रोता हुआ बच्चा
बिस्कुट कुतरते चुप हो रहा है
जिस पर एक थका युवक
अपने कुचले हुए सपनों को सहला रहा है
जिस पर हाथों से आँखे ढाँप
एक रिटायर्ड बूढ़ा भर दोपहरी सो रहा है
जिस पर वे दोनों
जिन्दगी के सपने बुन रहे हैं
पत्थर की बैंच 
जिस पर अंकित है आँसू, थकान
विश्राम और प्रेम की स्मृतियाँ
इस पत्थर की बैंच के लिए भी
शुरु हो सकता है किसी दिन
हत्याओं का सिलसिला
इसे उखाड़ कर ले जाया
अथवा तोड़ा भी जा सकता है
पता नहीं सबसे पहले कौन आसीन हुआ होगा
इस पत्थर की बैंच पर!

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