Sunday, December 30, 2012

बिल ब्राइसन का साक्षात्कार – अंतिम हिस्सा



(पिछली कड़ी से जारी)

वे ब्रिटिश जड़ें कितनी स्थाई हैं? मिसाल के लिए क्या आप यह जान सके कि लोगों देश को गणराज्य बनाने के लिए अच्छा समर्थन देते हैं?

अफ़सोस, देश को गणराज्य बनाने के लिए अच्छा समर्थन तो ख़ास अच्छा नहीं है. मेरा मानना है कि उनकी स्थिति खासी असुविधापूर्ण है, वे लम्बे समय तक ब्रिटेन का उपनिवेश रहे थे और वे जैसे भी हैं पिछले पचास सालों से एक अलग पहचान बनाने में लगे हैं और उसमें समय लगता है. ऐसा करना मुश्किल होता है पर वे लोग धीरे धीरे वहां पहुँच रहे हैं. मेरा ख्याल है ओलिम्पिक्स ने काफी मदद की. वह एक आखिरी कदम था जिसे लिया ही जाना था ताकि एक मुक्त आत्मनिर्भर समाज के रूप में उनकी पहचान बने और उनके भीतर वह आत्मविश्वास आए.

ऑस्ट्रेलिया में बच गई ब्रिटिश विशिष्टताओं में एक क्रिकेट है. ऑस्ट्रेलिया में रेडियो पर क्रिकेट कमेंट्री सुनने पर ‘डाउन अंडर’ में एक बढ़िया टुकड़ा है जिसे हम बिल से पढ़कर सुनाने को कहेंगे.

(बिल किताब से पेज ११० से ११३ तक पढ़कर सुनाते हैं.)

एक और चीज़ जिसने आपको बाँधा वह भौतिक तौर पर अपने अलग थलग पड़े होने के कारण ऑस्ट्रेलियाई महाद्वीप की उल्लेखनीय जैव और वन्य विविधता है. आपने किताब में ऐसी ऐसी और इतनी सारी प्रजातियों को दर्ज किया है जिन्हें इस ग्रह पर और कहीं नहीं पाया जाता.

हाँ, और हर वक़्त नई नई प्रजातियाँ खोजी जा रही हैं. वे जानते ही नहीं वहां और क्या क्या है. ऑस्ट्रेलिया के बारे में एक और शानदार बात यह है कि यह अब भी एक न खोजा गया मुल्क है. मुझे संख्या ठीक से याद नहीं लेकिन कोइ एक लाख कीट पतंगों की प्रजातियाँ वहां ऐसी हैं जिनका किसी वैज्ञानिक ने न निरीक्षण किया है, न उन्हें कोई नाम दिया गया है न उनका कोई कैटलोग तैयार हुआ है. यही बात वनस्पतियों के बारे में सच है. इस तरह की करीब पचास हज़ार प्रजातियाँ हैं. ऐसी ऐसी चीज़ें भी हैं जो कैंसर का इलाज कर सकती हैं. संभावनाएं अविश्वसनीय हैं. कोई भी असल में नहीं जानता वहां क्या क्या है.

और वह एक ऐसा देश है जिसके ढंग से नक्शे तक नहीं बनाए गए हैं.

बमुश्किल. ऑस्ट्रेलिया के नक़्शे वैसे तो बनाए जा चुके हैं जैसे हवाई जहाज़ से लैंडस्केप के काफी नज़दीक से गुजरते वक्त दीखते हैं पर वास्तविक ज़मीनी स्तर पर एक विशाल भूखंड के नक़्शे अभी बनने बाकी हैं. आप एक ऐसी जगह के बारे में बात कर रहे हैं जो संयुक्त राज्य अमेरिका महाद्वीप यानी निचले ४८ राज्यों जितना बड़ा है और जिसकी आबादी न्यूयॉर्क जितनी है. उसका इतना सारा हिस्सा अभी खाली पड़ा है. आप ऑस्ट्रेलियामें ऐसी जगहों पर भी अपने को पा सकते हैं जहां आप सड़क किनारे खड़े होकर एक तरफ देखें तो संभवतः अगले फुटपाथ को देखने आपको १५०० किलोमीटर आगे जाना पड़े. मुझे यह सब बहुत अचरजकारी लगता है.

मुझे ऑस्ट्रेलिया के तटीय इलाकों से काफी दूर के इलाकों के शुरुआती खोजियों के किस्से बहुत पसंद हैं. वो कहानी क्या थी अपना खुद का मूत्र पीने के बारे में? या किसी दूसरे का?

नहीं, मेरा अपना नहीं!

होता यह था कि खोजी लोग ऑस्ट्रेलिया जाया करते थे और चूंकि उनमें से ज़्यादातर ब्रिटेन और आयरलैंड जैसे मुलायम और समशीतोष्ण देशों से जाते थे, उन्हें कतई पता नहीं होता था कि वे जा कहाँ रहे हैं, न तो वहां के आकार के बारे में उन्हें बहुत मालूमात होते थे न वहां के पर्यावरण की मुश्किलों के. उनके जीवन की किसी भी चीज़ ने उन्हें इस के लिए तैयार नहीं किया होता था. सो वे समूचे महाद्वीप को आरपार कर लेने के बड़े मंसूबों के साथ सफ़र शुरू करते थे जो आज के मोटरगाड़ियों के ज़माने में भी ख़ासा बड़ा काम होता है.सो उन्नीसवीं शताब्दी में ऐसा करना बेहद मुश्किल होता था और निरपवाद रूप से उन सब का सामना ऐसी परिस्थितियों से होता था जब उनके पास पीने को पानी की एक बूँद तक नहीं होती थी और उन्हें अपना या अपने घोड़े का मूत्र पीने को विवश होना पड़ता था. ऐसा आम तौर पर उल्टा असर करने वाला होता है क्योंकि मूत्र में उपस्थित लवण प्यास को और बढ़ा दिया करते थे. ऐसा मैंने पढ़ा है – कभी जांचकर नहीं देखा.

कुछ समय के लिए आपका एक साथी भी था – आपका दोस्त एलन – जो आपके साथ कुछ समय के लिए आया था और जिसे आप ऑस्ट्रेलिया में उसके साथ घट सकने वाली हैबतनाक बातों की कहानियाँ सुनाकर डराया करते थे. क्या आप एलन के साथ क्वींसलैंड वाला हिस्सा पढ़कर सुनाएंगे?

उस हिस्से की पृष्ठभूमि समझाना चाहूँगा पहले. मैं क्वींसलैंड के उत्तरी विषुवतीय इलाके में हूँ एक बीच पर टहलता हुआ और मेरे साथ मेरे ब्रिटिश दोस्त एलन शेर्विन है जो कुछ दिन मेरे साथ घूमने के लिए पहुंचा है. तब तक मैं इस तथ्य से भली भाँती परिचित हो चुका था कि सैद्धांतिक रूप से हालांकि जानवर बहुत खतरनाक होते हैं, वास्तविकता में वे नहीं होते, लेकिन एलन को यह मालूम नहीं था और यह सब उसके लिए नया था. और मैं स्वीकार करना चाहूँगा कि मैंने उसके इस अज्ञान का फायदा उठाया. आपको यह भी पता होना चाहिए कि वह क्वींसलैंड में बॉक्स जेलीफिश का सीज़न था. बॉक्स जेलीफिश अंडे देने के लिए इन दिनों भीतरी तटों तक आया करती थीं और यह भी कि यह धरती पर सबसे ज़हरीली प्रजातियों में एक होती है.

(बिल इस हिस्से को पढ़ते हैं)

आपने ऑस्ट्रेलिया को एक भाग्यशाली देश कहा है, लेकिन जो एक हिस्सा इस तस्वीर में फिट नहीं बैठता वह वहां के आदिवासियों का कष्ट है. आधुनिक समाज में इन आदिवासियों की स्थिति को लेकर आपने जो आंकड़े उद्धृत किये हैं वे तबाहकुन हैं और ऐसा लगता ही कि इसके लिए सतही उत्तर यही दिया जाता है कि बीसवीं सदी और आदिवासी आपस में मेल नहीं खाते. आपकी किताब में सबसे दुखी करने वाला हिस्सा वह है जिसमें आप इन दो संसारों के बीच की खाई पाटने के लिए की जा रही सोशल इंजीनियरिंग का वर्णन करते हैं. क्या आप हमें थोड़े से में बता सकेंगे कि वह प्रयोग क्या था और उन तथाकथित “चुरा ली गयी पीढ़ियों” का क्या हुआ?

उसे ही “चुरा ली गयी पीढ़ियाँ” कहा जाता था और यह सारे ऑस्ट्रेलिया में सबको मालूम है और सभी को उस की वजह से बेहद ग्लानि महसूस होती है.

जैसा कि आप कह रहे हैं यह सोशल इंजीनियरिंग की एक प्रक्रिया थी जिसे सदी के शुरू में लागू किया गया और हाल के समय तक यानी साठ के दशक तक चालू थी. आदिवासी बच्चों को उनके माँ-बाप से अलग कर के – हालांकि इसके पीछे भलमनसाहत की भावना होती थी - सरकारी स्कूलों – एक तरह के सरकारी अनाथालयों में ले जाया जाता था – या शहरों में रह रहे शहरी यूरोपियनों को गोद दे दिया जाता था ताकि वे गरीबी और अज्ञान के चक्र से बाहर आ सकें. इस नीति को इन लोगों के मोक्ष की तरह देखा गया जो मूलतः जंगली थे, कि उन्हें उनकी गरीबी से बाहर लाकर एक बेहतर वातावरण में रखा जाए. लेकिन सच यह था कि इस वजह से परिवार तबाह हो रहे थे. परिवार टूटते जा रहे थे. एक माता-पिता के तौर पर आप को कैसा लगेगा अगर एक दिन आपके घर के बाहर आकर एक सरकारी वैन रुके और उसमें से लोग उतर कर आपसे कहें “माफ़ कीजिये, हम आपके चार बच्चों को ले जा रहे हैं. हम उन्हें आपसे दूर ले जा रहे हैं. इसमें आप कोई भी विरोध नहीं कर सकते. किसी बच्चे को जन्म देने वाला आदिवासी अपने बच्चे का कानूनी अभिभावक नहीं था - यह सरकार का काम था. सरकार के पास बच्चे को उठा ले जाने की कानूनी अनुमति थी. इस मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट कचहरी जैसा भी कुछ नहीं था. सरकार अपने “बच्चों” की कस्टडी खुद ले सकती थी, जैसा की उस समय का कानून कहता था. वे बच्चों को उठा ले जाते थे. आप कल्पना कीजिये इस से बच्चों पर क्या असर पड़ा होगा. आप कल्पना कीजिये इस से माता-पिताओं पर क्या असर पड़ा होगा. कुछ मामलों में यह कई सालों तक चलता रहा. कभी कभी एक ही परिवार के चार बच्चे देश के चार बिलकुल अलग-अलग हिस्सों में पहुंचा दिए जाते थे. तो आप के देश में छेद दिए गए परिवार थे. आप ने हर तरह की समस्या जैसे अपने बच्चों से बिछड़ गए माता-पिताओं की आत्महत्या और अल्कोहोलिज्म के लिए ज़मीनी काम तो कर ही दिया था. और उन बच्चों के लिए नई जगहों पर खुद को ढालने की समस्या? – किस कदर गहरे ट्रौमा से गुजरना पड़ता था उन्हें. कभी कभी तो वे चार और पांच की आयु में उठा लिए जाते थे.

क्या उन्हें उठाये जाने के बाद किसी तरह का आपसी संपर्क हो पाता था?

नहीं, क्योंकि माना जाता था कि ऐसा करना एक कदम पीछे हटना होगा. इसे परोपकार की भावना से किया गया कार्य कहा जाता था. लेकिन जिस तरह से उसका कार्यान्वयन होता था वह खौफनाक था. मुल्क उस बात की कीमत आज भी चुका रहा है क्योंकि इस सारे तमाशे ने आदिवासियों और सरकार के लिए उनकी भावनाओं के बीच बड़ी खाई बना दी थी. बहुट से परिवार तहस नहस हुए और अल्कोहोलिज्म का एक भयानक चक्र शुरू हो गया

तो वर्तमान एकीकरण नीति को लेकर आप क्या सोचते हैं?

ज़ाहिर है, अब वे जो कर रहे हैं उसमें विवेक का इस्तेमाल ज्यादा होता है. यह अब भी एक बड़ी समस्या है. सामाजिक अभाव के किसी भी इंडैक्स में आदिवासी हमेशा सबसे नीचे आते हैं. अगर आप गिरफ्तारियों, नशीली दवाओं, गरीबी, स्वास्थ्य, शिशु मृत्यु जैसी चीज़ों के आंकड़े देखें तो तो वे सबसे नीचे होते हैं. साफ़ है उन्हें बेहतर जीवन देने के लिए बहुत कुछ और किया जाना है. इस समस्या का सबसे बड़ा हिस्सा यह है कि उनमें से अधिकतर सुदूर इलाकों में रहते हैं. सो उनके पास शिक्षा और रोज़गार के वैसे अवसर नहीं हैं जैसे उन्हें शहरों में रहते हुए मिलते. यह एक्बहुत बड़ी समस्या है और कोई भी आज तक किसी ठोस समाधान के साथ आगे नहीं आया.

ओलिम्पिक्स की बात करते हैं. आप सिडनी मॉर्निंग हैरल्ड और द टाइम्स के लिए रिपोर्टिंग करने ओलिम्पिक्स में मौजूद थे. दर असल मैंने आप का लिखा तलवारबाजी और टेबल टेनिस जैसे कम चर्चित खेलों पर लिखा हुआ एक टुकड़ा पढ़ा था. मुझे बताया गया है कि वहां कुछ लोग थे जो टेबल टेनिस में आप से बेहतर थे?

मैं उन सारे ‘अल्पसंख्यक’ खेलों को देखने गया लेकिन कोई भी मुझे भाया नहीं. जैसे तलवारबाजी - सिर्फ ‘क्लिक क्लिक क्लिक’ और हो गया. फिर वे आराम करते हैं. दोबारा गार्ड लिया और ‘क्लिक क्लिक क्लिक’ और फिर हो गया. आप बस सोचते रह जाते हैं “ये खेल है क्या चीज़ यार?” मुझे वह बेहद उबाऊ लगा और मैंने जूडो पर ध्यान लगाया. वह भी ऐसा ही था. अब ये दो बन्दे हैं लगातार एक दुसरे के गिर्द चक्कर लगा रहे हैं जैसे कि दूसरे के जाने बिना उसकी कमीज़ उतार देने की जुगत में लगे हुए हैं. मैंने सोचा – ‘ये है क्या? मेरी समझ में कुछ नहीं आया.” फिर मैं टेबल टेनिस पर गया जो मेरी समझ में आ गया क्योंकि मैं उसे खेल चुका था – ओलिम्पिक के स्तर पर नहीं – पर मेरी समझ में आता था वह. मेरी समझ में आया कि ये लोग उस सब से कहीं आगे पहुँच चुके लोग हैं जिसका मैं सपना देख सकता हूँ. मुझे बड़ा खराब लग रहा था कि मैं तलवारबाजों की कला की तारीफ करने लायक न था. वे मेरी समझ में इस वजह से नहीं आटे थे कि वे इस कदर शानदार थे, इस कदर फुर्तीले कि मैं देख ही नहीं पा रहा था कि वे कर क्या रहे थे.

तलवारबाजी को लोकप्रिय बनाने के लिए आपके पास कुछ विचार थे ...

हाँ, कुछ सुझाव थे. मुझे लगा कि आप सरप्राइज़ अटैक जैसे दाँवों को प्रोत्साहित कर सकते थे . मुझे लगा कि ऐसा अच्छा रहेगा. मुझे यह विचार भी भाया कि एक खिलाड़ी पारंपरिक तलवार लिए हो और दूसरा बरछी. सबसे प्रिय मुझे यह विचार लगा कि दोनों ही की आँखों पर पट्टी बाँध दी जाए और दोनों को  थोड़ा गोल गोल घुमाकर अचानक एक दूसरे की तरफ धकेल दिया जाए. इस से खेल लम्बा खींचेगा ...

खासी गंभीर खेल पत्रकारिता है जनाब! ... खैर. ‘डाउन अंडर’ में आपके एक वाक्य ने मुझे हैरत में डाला था जब आपने तनिक निराशा के साथ कहा था कि आज के समय में यात्रा का बड़ा हिस्सा चीज़ों को देख लेना होता है, जब तक कि वे बची हुई हैं. कौन सी चीज़ गायब हो रही है?

स्पष्टतः दुनिया में आप जहां भी जाएं हर जगह एक सी में बदल रही है, और यह मुझे हतोत्साहित करने वाला लगता है. अमेरिका के किसी भी शहर में अगर आपने कॉफ़ी पीनी है तो स्टारबक्स कप हर जगह मिलता है. दुनिया का मैक्डोनाल्डीकरण. और ऐसा हर जगह और और ज्यादा होता दीखता है. यह सिर्फ अमेरिकी फिनोमेना नहीं है – बॉडी शॉप और एनी संस्थाएं भी इस में सहयोग कर रही हैं, जैसा कि व्यावसायिक संसार के साथ होना ही होता है, अमेरिका पथप्रदर्शक है. यह भी हतोत्साहित करने वाला है. जब मैं एलिस स्प्रिंग्स पहुंचा तो मुझे बहुत निराशा हुई थी. मैं डार्विन से हज़ार किलोमीटर गाड़ी चलाकर इस खाली रेगिस्तान में पहुंचा था. में होटल के कमरे में घुसा और जैसे ही मैंने परदे खोले सड़क के उस पर के-मार्ट दिख गया. मैं इतनी दूर के-मार्ट देखने नहीं आया था.

आप ने एलिस स्प्रिंग्स को ऐसे समुदाय के तौर पर वर्णित किया है जो एक ज़माने में सुदूर होने की वजह से विख्यात था और अब वहां हज़ारों लोग सिर्फ यह देखने आते हैं कि अब वह कितना सुदूर नहीं रह गया है. यह आधुनिक यात्रा की एक विडम्बना है कि आप किसी ख़ास जगह को ढूंढते हैं, जो इस वजह से भी ख़ास है कि काफी दूर है और वहां पहुँचने के लिए काफी मशक्कत करनी होती है और यह कि आप भी ख़ास होने जा रहे हैं क्योंकि आपने वहां पहुँचने के लिए मशक्कत की है और जब आप वहां पहुँचते हैं आप पाते हैं कि वहां आप ही जैसी सोच वाले असंख्य लोग जमा हैं और यही नहीं वह जगह आपका इंतज़ार कर रही है. यह सब दर असल आपके स्वागत के लिए तैयार किया गया होता है. जब आप एलिस स्प्रिंग्स जैसी जगह पहुँचते हैं जहां बाकी असंख्य लोग भी उसी वजह से पहुंचे हैं तो क्या आपको निराशा होती है?

माफ़ कीजिये, क्या मैं एक बात कह सकता हूँ. क्या हम लोग एक ड्रिंक के लिए अभी जाएंगे या नहीं?

बस पांच मिनट! आप सवाल का जवाब दे दीजिये.

मैं निराश हुआ था. इस से कोई बचाव भी नहीं था. मेरी उम्मीदें काफी ज्यादा थीं. एलिस स्प्रिंग्स टिम्बकटू किस्म की जगह है. बाहर से आने वाले ज़्यादातर लोग इस बारे में जानते ही नहीं सो आप अपने दिमाग में कुछ छवियों का निर्माण करने लगते हैं. मैंने सोचा था कि वह कोई धूलभर गायों वाला शहर होगा जहां पोस्टों से घोड़े बंधे हुए होंगे वगैरह. वहां जाकर मैं पाता हूँ कि वह बिलकुल आधुनिक नगर है जो मेलबर्न या ऐसे ही किसी महानगर से सटा हुआ उपनगर भी हो सकता था. इस लिहाज़ से मैं निराश हुआ था. पर असल में वह अच्छा था. एलिस स्प्रिंग्स में कुछ भी गलत नहीं. बस वह उतना एक्ज़ोटिक नहीं था जैसे मैंने सोच रखा था

यह कह चुकने के बाद भी, यात्रा करने से हतोत्साहित होने के बजाय, ‘डाउन अंडर’ के आखीर में मुझे ऐसा लगा कि आप वापस वहां जाना चाहेंगे. कि अभी वहां बहुत कुछ है जिसे आपने देखना बाकी है. यह कहता हुआ मैं खोटेपन का प्रदर्शन कर रहा हूँ पर क्या आप वाकई निराश हुए थे क्योंकि ‘डाउन अंडर’ खत्म करने के बाद मुझे ऑस्ट्रेलिया जाने की प्रेरणा मिलने लगी थी और मैं उन सब जगहों पर जाना चाहता था जिनके बारे में आपने बताया है. सो मैं तो बेशर्मी से हर किसी को ‘डाउन अंडर’ पढने की सिफारिश करूंगा क्योंकि यह श्रेष्ठतम कोटि का यात्रावृत्त है क्योंकि इस को पढ़कर आप का मनोरंजन होता है, आप बहुत कुछ सीखते हैं, और यह आपको यात्रा करने की प्रेरणा भी देता है.

फिलहाल मैं बिल को मुक्त करता हूँ.
 (जारी)

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