Thursday, January 17, 2013

हम देखा किये प्रेम के एक सूरज को अपनी बरौनियाँ झपकाते हुए



सरकंडों के गठ्ठर के लिए चार गीत

-अदूनिस  


१.    भूखा इंसान
(एक स्वप्न)

भूख उसकी नोटबुक पर बनाती है
सितारों या सड़कों के चित्र,
और ढँक देती है सपनों के परदों से
पत्तियों को.
हम देखा किये
प्रेम के एक सूरज को अपनी बरौनियाँ झपकाते हुए,
और देखा किये
एक उगती भोर को.

२.    नींद और नींद से जागना

अपनी नींद में, वह तैयार करता है
बेकाबू क्रान्ति के लिए एक नमूना
जो लिए हुए है भविष्य को अपनी आगोश में.

फिर वह जगता है
उसके दिन बन जाते हैं
एक तोता
जो शोक करता रहता है गुज़र चुकी रात
और उसके अदृश्य हो गए सपनों का.

३.    जन
(एक स्वप्न)

पेड़ इकठ्ठा हुए, फलों जैसी चीखों
और इच्छाओं से लदे हुए,
और नदी किनारे
निकल पड़े जुलूस बनाकर.
बिजली की कड़क से घबराए वे
मानो वह चिंगारियां थी.

नदी के दूसरे किनारे
बंधक बना ली गयी अपनी चिड़ियों के दुःख से
भौंचक्के रह गए पेड़.

४.    क्रोध
(एक स्वप्न)

गुस्से में है फ़रात नदी.
उसके किनारे अटे हुए हैं कंठों से,
सदमे और बवंडर की मीनारें
और घोड़े हैं लहरें.

मैंने भोर को देखा – उसके केश काट दिए गए थे
मैंने पानी को देखा, उसका गर्जन तराशा हुआ,
बहता हुआ, आगोश में लेता उसके भालों को.

गुस्से में है फ़रात नदी.
इस आहत क्रोध को
न आग बुझा सकेगी, न प्रार्थनाएं.

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