Thursday, January 17, 2013

अनगिनत सीमाओं पार खिड़की पर वह उदास है


मेरे लिए भी कोई

-लाल्टू

मेरे लिए भी कोई सोचता है
अंधेरे में तारों की रोशनी में उसे देखता हूँ
दूर खिड़की पर उदास खड़ी है । दबी हुई मुस्कान
जो दिन भर उसे दिगंत तक फैलाए हुए थी
उस वक़्त बहुत दब गई है.
अनगिनत सीमाओं पार खिड़की पर वह उदास है.
उसके खयालों में मेरी कविताएँ हैं.  सीमाएँ पार 
करते हुए गोलीबारी में कविताएँ हैं लहूलुहान.
वह मेरी हर कविता की शुरुआत.
वह कश्मीर के बच्चों की उदासी.
वह मेरा बसंत, मेरा नवगीत, 
वह मुर्झाए पौधों के फिर से खिलने-सी.

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