-अनुवाद : मंगलेश डबराल
(पिछली कड़ी से आगे)
आपके पहले संग्रहों में से एक ‘बीस प्रेम कविताएं और निराशा का एक गीत’
हजारों पाठकों द्वारा पढ़ा गया है और पढ़ा जा रहा है‐
नेरुदा: जिस संस्करण के साथ उस पुस्तक की दस लाख प्रतियों का
प्रकाशन पूरा हुआ, उसकी भूमिका में मैंने कहा है कि मुझे सचमुच नहीं मालूम कि यह
सब किस बारे में है - क्यों प्रेम की उदासी, प्रेम की पीड़ा की यह किताब इतने सारे लोगों,
इतने युवकों द्वारा पढ़ी जाती है‐
सच, मुझे समझ में नहीं आता‐ शायद यह कई सारे रहस्यों का एक युवा अंदाज पेश करती है: शायद
यह उन पहेलियों का समाधान पेश करती हो‐ यह एक शोकाकुल संग्रह है, लेकिन इसका आकर्षण पुराना नहीं पड़ा‐
आप उन कवियों में हैं जिनकी रचनाओं के सबसे अधिक अनुवाद हुए
हैं - कोई तीस भाषाओं मे‐ सबसे अच्छा अनुवाद किन भाषाओं में हुआ है?
नेरुदा: मेरे विचार से इतालवी में ‐
शायद इसलिए कि दोनों भाषाओं में बहुत समानता है‐
इतालवी के अलावा मैं अंग्रेजी और फ्रांसीसी जानता हूं,
लेकिन इन भाषाओं का स्पेनी से कोई तालमेल नहीं है: न उच्चारण
में,
न संयोजन में, न रंगत और शब्दों के वज़न मे‐
आप अपने को आसपास की चीजों से काट लेते हैं?
नेरुदा: काट लेता हूँ ‐ और फिर अगर अचानक शांति छा जाये तो मुझे बाधा-सी महसूस होती
है‐
गद्य को आपने कभी ज्यादा महत्त्व नहीं दिया‐
नेरुदा: गद्य...मुझे अपनी जि़्ान्दगी में हमेशा पद्य ही लिखने
की आवश्यकता महसूस होती रही है‐ गद्यात्मक अभिव्यक्ति में मन नहीं लगता‐
गद्य का सहारा मैं किसी खास तरह की उड़ती हुई भावना या घटना
को अभिव्यक्त करने के लिए लेता हूं, जिसमें किसी वर्णनात्मकता की गुंजायश हो‐
सच तो यह है कि मैं गद्य लिखना एकदम छोड़ सकता हूं‐
बस, कभी-कभार ही लिखता हूं‐
अगर कभी आपकी रचनाएं आग में पड़ जायें और उन्हें बचाना हो तो
कौन-सी रचना बचायेंगे?
नेरुदा: शायद उनमें से कोई भी नही‐
वे मेरे किस काम आयेंगी? उनकी जगह मैं एक लड़की को बचाना चाहूंगा...या जासूसी कहानियों
की किसी बढि़या किताब को‐ उनसे मेरा अपनी रचनाओं की अपेक्षा कहीं अधिक दिल बहलाव होगा‐
आपकी कृतियों को किस आलोचक ने सबसे अच्छी तरह समझा है?
नेरुदा: अरे, मेरे आलोचक! मेरे आलोचकों ने तो दुनिया-भर की नफरत या प्रेम
लेकर मेरी धज्जियां उड़ा के रख दी है‐ कला की तरह ज़िन्दगी में भी आप हरेक को खुश नहीं रख सकते,
और यह एक ऐसी स्थिति है जो हमेशा बनी रहती है ‐
आपको हमेशा चुंबन और चांटे मिल रहे हैं,
दुलार और दुलत्तियां मिल रही हैं,
और यही एक कवि की जिन्दगी है‐ जिस बात से मुझे परेशानी होती है,
वह है: आपकी कविता या जि़्ान्दगी की घटनाओं की तोड़-मरोड़कर
की गयी व्याख्या‐ उदाहरण के लिए न्यूयार्क में पी.ई.एन. क्लब के सम्मेलन में जहां
कि अनेक जगहों के अनेक लोगों को इकट्ठा होने का अवसर मिला था,
मैंने अपनी सामाजिक कविताएं पढ़ीं,
वे कविताएं कूबा को
समर्पित थीं, उसकी क्रांति के समर्थन में थी‐ लेकिन कूबा के लेखकों ने लाखों की तादाद में एक पर्चा छपवाकर
बंटवाया जिसमें मेरे विचारों को संदिग्ध माना गया और मुझे उत्तरी अमरीकियों की छत्रछाया
में रहने वाला जीव करार दिया गया‐ उसमें यहां तक कहा गया कि मुझे अमरीका बुलाया जाना भी एक तरह
का इनाम है‐ यह झूठा लांछन नहीं तो सरासर मूर्खतापूर्ण बात है,
क्योंकि समाजवादी देशों के भी अनेक लेखक वहां उपस्थित थे और
कूबा के लेखकों तक के आने की सम्भावना थी‐ न्यूयॉर्क जाने में हमारे साम्राज्यवाद-विरोधी चरित्र में कोई
बदलाव भी आ गया‐ फिर भी या तो हड़बड़ी में या किसी बदनीयती के चलते कूबाई लेखकों की ओर से ऐसा कहा
गया‐
इस समय मैं अपने दल की तरफ से गणराज्य के राष्ट्रपति पद के चुनाव
में खड़ा हुआ हूं और इससे भी जाहिर है कि मेरा वस्तुतः एक क्रांतिकारी इतिहास रहा है‐
उस पत्र पर जिन लेखकों के हस्ताक्षर थे,
उनमें से एक भी ऐसा नहीं है जो क्रांतिकारी कामों के प्रति इतना
निष्ठावान रहा हो या जितना काम और संघर्ष मैंने किया उसके सौवें हिस्से के बराबर भी
कर सका हो‐
आपके रहन-सहन और आर्थिक स्थिति को लेकर आपकी आलोचना होती रही
है‐
नेरुदा: सामान्य रूप से, यह मनगढ़ंत है‐ एक अर्थ में स्पेन से हमें एक खासी बुरी विरासत मिली है,
वह कभी यह सहन नहीं कर सकती कि हमारे लोग साधारण से अधिक हों
या किसी बात में विशिष्टता प्राप्त करे‐ क्रिस्टोफर कोलंबस जब लौटकर स्पेन आया तो जंजीरों से जकड़ दिया
गया‐
यह ईर्ष्यालु पेटी-बूर्जुआजी की देन है,
जिसके भीतर बस यही ख्याल घुमड़ते रहते हैं कि दूसरों के पास
क्या है और यह कि हमारे पास अब नहीं है‐ जहां तक मेरा संबंध है, मैंने अपनी जिंदगी जनता के कल्याण के लिए समर्पित की है और मेरे
घर में जो कुछ है - यानी किताबें - वह मेरे अपने अस्तित्व का नतीजा है‐
जिस तरह के उलाहने मुझे मिलते हैं वैसे उन लेखकों को नहीं मिलते,
अमीरी जिनका जन्मसिद्ध अधिकार है‐
उनकी बजाय सारी निंदा मेरे हिस्से में आ सकती है‐
(जारी)
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