अफ्रीकी लोक-कथाएँ : ९
सियार और सूरज
बहुत पुरानी बात है जब आदमी जानवर थे और जानवर आदमी, एक सियार अपने बूढ़े पिता
के साथ रहता था. एक दिन बूढ़े ने अपने बेटे से कहा: “सुनो बेटा, तुमने अपने लिए
जल्द ही एक दुल्हन ढूंढ लेनी चाहिए जो हमारे लिए खाना पका सके, खास तौर पर जब तुम
यहाँ नहीं होते हो. तुन देख ही रहे हो मैं कितना बूढ़ा हो चुका हूँ.”
बाहर जाकर सियार अपनी बकरियों को बाड़े से निकाल कर चराने चल दिया. दूर झाडियों
में उसने कोई चमकती हुई चीज़ देखी. उसने मन ही मन सोचा चट्टान पर इतनी ख़ूबसूरती से
चमक रही यह क्या चीज़ हो सकती है?
उसे अपनी पिता की बताई हुई एक बात याद आई और वह चट्टान पर चमकती उस सुन्दर चीज़
को देखे के लिए उसके और भी नज़दीक गया. उसने पूछा: “तुम मनुष्य हो या कोई और चीज़?”
“नहीं, यह मैं हूँ” चमक ने जवाब दिया “मैं सूरज हूँ.”
सियार ने कहा: “माफ करना, मुझे नहीं पता था यह तुम हो. तुम अकेले क्यों हो?”
सूरज ने जवाब दिया: “मेरे माँ-बाप ने मुझे गोद से उतार दिया इसलिए मैं इतना
अकेला हूँ. दरअसल मैं गर्म हूँ.”
सियार बोला: “नहीं तुम सुन्दर हो. मैं तुम्हें उठा कर ले चलूँगा. कोई परेशानी
नहीं है. मैं तुम्हें अपने घर ले जाऊँगा ताकि मेरे पिताजी तुम्हें देख सकें.”
सूरज ने उत्तर दिया: “ठीक है पर बाद में शिकायत मत करना.”
सियार ने सूरज को अपनी पीठ पर लादा और घर के रास्ते लग लिया.
सियार की पीठ पर सूरज जलने लगा था. “क्या तुम थोड़ी देर को मेरी पीठ से उतरोगे
ताकि मैं थोड़ा आराम कर सकूं?”
“मैंने तुम से पहले ही कहा था,” सूरज बोला “शिकायत मत करना. अब चलते चलो.”
बहुत ज़्यादा दूर तक यूं सूरज को लादे ले चलना सियार के लिए मुमकिन न था. अचानक
सियार ने थोड़ा आगे रास्ते पर लकड़ी का एक कुंदा गिरा देखा. उसने कुंदे के नीचे से
रेंगना शुरू किया ताकि उस से टकरा कर सूरज नीचे गिर जाए. तो सूरज के साथ साथ उसकी
पीठ की खाल भी कुंदे से टकराने के कारण पीछे छूट गए.
जब सियार घर पहुंचा तो पीठ की खाल निकल जाने से तड़प रहा था. उसके पिता ने तेल
चुपड़कर उसकी पीठ का इलाज किया. कुछ समय बाद इलाज ने अपना काम किया और सियार की पीठ
की फर फिर से उग आई. यह अलग बात है कि उसका रंग पुराने जैसा नहीं था.
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