अवश्य ही यह विख्यात बंदिश कभी न कभी आपने ज़रूर सुनी होगी.
बड़े गुलाम अली खाँ साहब से लेकर मन्ना डे तक न जाने कितने ही बड़े गवैये इसे स्वर दे चुके हैं लेकिन अमीर खाँ
साहब के यहाँ यह बंदिश एक दूसरा ही आयाम ग्रहण कर लेती है – ऐसा केवल और केवल यही महान फ़नकार कर सकता था. रस लीजिए -
1 comment:
बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर आने के लिए क्षमा मांगता हूँ .
लाजवाब
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