अफ्रीकी लोक-कथाएँ : ८
राजकुमारी, राजा और एक आदमी की कथा
कुछ समय पहले जंगल में एक अकेला शिकारी रहता था. उसका कोई परिवार नहीं था और
वह बाकी लोगों से दूर रहा करता था.
एक दिन उस इलाके के राजा ने अपनी प्रजा को अपराधियों से बचाने के लिए कैदखाना
बनाने का फैसला लिया.
राजा के शेर को कैद कर लिया क्योंकि वह लोगों को खा जाता था. सांप को इसलिए
कैद किया गया क्योंकि वह लोगों को ज़हर दिया करता था. चोरी करने वाले एक आदमी को भी
पकड़ लिया गया.
कुछ समय बाद यूं ही टहलने निकले शिकारी को कैदखाना नज़र आया. उसे सुनाई दिया:
“बचाओ! बचाओ! हमें यहाँ से बाहर निकालो! एक दिन बदले में हम तुम्हारी मदद करेंगे!”
शिकारी ने उनकी मदद करने का निर्णय लिया. उसने कैदखाने के दरवाज़े खोलकर उन्हें
आज़ाद कर दिया.
बहुत ज़्यादा दिन नहीं हुए थे जब शिकारी से मिलने शेर जंगल में उसके ठिकाने पर
पहुंचा. जब उसने देखा कि शिकारी अकेला रहता है , उसका कोई परिवार नहीं और न ही
उसके पास कोई जानवर हैं तो उसने शिकारी की मदद करने को एक तरकीब सोची. वह शहर जाकर
राजा की बेटी को पकड़ लाया और उसे शिकारी के पास ले जा कर बोला: “तुम राजा की इस
बेटी को अपनी पत्नी बना लो.”
इसके बाद शेर दौड़ कर गया और कुछ देर में बकरियों का एक झुण्ड अपने साथ लेकर
लौटा. इसके बाद से शिकारी और राजकुमारी खुशी खुशी अपना जीवन बिताने लगे और संपन्न
होते गए.
कुछ समय बाद शिकारी द्वारा आज़ाद कराए गए आदमी को उसकी याद आई. “वह शिकारी क्या
कर रहा होगा?” आदमी ने सोचा “मुझे जाकर देखना चाहिए वह जिंदा है या मर गया.”
जब आदमी शिकारी के घर पहुंचा, उसने वहां पहुँचते ही राजा की बेटी को पहचान
लिया. उसे याद आया कि शेर कुछ दिन पहले उसे उठा ले गया था. लेकिन उसने शिकारी और
राजकुमारी दोनों से कुछ कहा नहीं.जब उसने बकरियों का झुण्ड देखा तो उसे याद आया कि
कुछ ही दिन पहले गाँव के एक अमीर आदमी की बकरियां लापता हो गयी थीं.
तब भी वह कुछ नहीं बोला. उसने राजकुमारी और उसके पति का अभिवादन किया और
उन्हें शुभकामनाएं दीं.
इसके बाद वह आदमी सीधा राजा के पास गया और पूरी दास्तान सुनाई. राजा बहुत खुश
हुआ कि उसकी बेटी अभी जिंदा है, पर उसे गुस्सा भी आया कि वह शिकारी की पत्नी बन
गयी है. उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि शिकारी और राजकुमारी को पकड़ लाएं.
“कल सुबह तुम्हें मौत की सज़ा दी जाएगी!” राजा ने आदेश दिते हुए कहा “इस शिकारी
को तहखाने में डाल दिया जाए!”
इस बीच राजा निबटने के उद्देश्य से जंगल की तरफ़ निकल गया. वह झुक कर नीचे
बैठने को ही था कि शिकारी द्वारा मुक्त कराए गए सांप ने उसे काट लिया. राजा की तबीयत
उसके बाद बहुत बिगड गयी.
गाँव के सारे वैद्य बुलाए गए पर सांप के ज़हर से निबटने का इलाज किसी के पास न
था.
तब राजकुमारी अपने पिता के सलाहकार के पास जाकर बोली “मेरे पति को मुक्त कर
दीजिए. मुझे पक्का यकीन है वे पिताजी को ठीक कर देंगे.”
सलाहकार ने पूछा “तुम्हें ऐसा पक्का यकीन क्यों है?”
“मैं जानती हूँ वे ऐसा कर पाएंगे. वे एक चिकित्सक भी हैं.” राजा की बेटी बोली.
उधर वही सांप तहखाने में शिकारी के पास जा पहुंचा. जब सांप को पता लगा कि बाहर
क्या चल रहा है तो उसने एक छोटी सी शीशी में अपना थोड़ा सा ज़हर थूक कर बाहर निकाला
और उसे शिकारी को देते हुए कहा “ये लो, जब वे तुम्हें आज़ाद करने आएं तो अपने साथ
इस शीशी को ले जाना. इसे हर हाल में राजा को पिला देना. वे ठीक हो जाएंगे.”
सूरज के उगने से पहले ही राजा के चाकर शिकारी को अपने साथ ले जाने आए. शिकारी
ने सांप के ज़हर को राजा को मुंह से लगा दिया. जब राजा के पेट में सांप का ज़हर गया
तो उसे उल्टियां आना शुरू हो गईं. सारा ज़हर बाहर आने से राजा स्वस्थ हो गया.
तब राजा बोला: “इस आदमी ने मेरी जान बचाई है. अवश्य ही यह एक अच्छा दामाद साबित
होगा. उस दूसरे आदमी को लाओ जो इसे यहाँ लेकर आया था. अब उसे भुगतनी होगी सज़ा.”
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