Saturday, June 8, 2013

अफ्रीकी लोक-कथाएँ : ७


अफ्रीकी लोक-कथाएँ : ७


चालबाज़ आदमी और दोस्ती की परख

दो लड़के पक्के दोस्त थे. उन्होंने हमेशा एक दूसरे के साथ बने रहने का वादा किया हुआ था. जब वे बड़े हुए उन्होंने आमने-सामने अपने घर बनाए. दोनों के खेतों के दरम्यान एक पतली सी पगडंडी भर थी.

एक दफा गाँव में एक चालबाज़ आदमी आया. उसने दोनों दोस्तों के साथ एक शरारत करने की ठानी. उसने एक ऐसा कोट पहना जो आगे से नीले और पीछे से लाल रंग का था. चालबाज़ आदमी दोनों दोस्तों के घरों के बीच के पतले से रास्ते से गुजरा. दोनों दोस्त आमने सामने अपने खेतों में काम कर रहे थे. वहां से गुजरते हुए चालबाज़ आदमी ने कुछ अटपटी आवाजें निकालीं. वह निश्चित कर लेना चाहता था कि दोनों दोस्त अपनी निगाहें उठाकर उसे एक बार ज़रूर देख लें.

शाम के समय दोनों दोस्त सुस्ताते हुए बातचीत कर रहे थे.

“तुमने दिन में उस आदमी को देखा? क्या बढ़िया लाल कोट पहने था वह!”

“तुम्हारा मतलब है वह जिसने नीला कोट पहना हुआ था.” दूसरे ने जवाब दिया.

“नहीं भाई. उसका कोट लाल रंग का था. मैंने अपनी आँखों से उसे देखा था जब वह सामने रास्ते से गुज़र रहा था.”

“गलत कह रहे हो तुम!” दूसरा दोस्त बोला “मैंने भी अपनी ही आँखों से देखा था और उसने नीला कोट पहना हुआ था.”

“मुझे मालूम है मैंने क्या देखा था.” गुस्से में आते हुए पहला दोस्त बोला. “लाल था कोट.”

“तुम्हें कुछ नहीं मालूम!” दूसरे ने पलट कर जवाब दिया “नीला था.”

पहले दोनों दोस्त बहस करते रहे और बाद में एक दूसरे का अपमान करने पर उतारू हो गए. थोड़ी ही देर बाद दोनों में मारपीट शुरू हो गयी!

तभी चालबाज़ आदमी लौट आया. उसने लड़ते हुए दोनों को देखा जो चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे: “अब हमारी दोस्ती खत्म!”

चालबाज़ आदमी बड़ी जोर से हंसा. और उसने उन्हें अपना दोरंगी कोट दिखलाया. दोनों फिर से गुस्सा होकर उस पर बरस पड़े.

“हम पूरी जिंदगी भाइयों की तरह साथ साथ रहे हैं! और आज तुमने हमारे बीच लड़ाई करवा दी!”

चालबाज़ आदमी ने ठंडे स्वर में जवाब दिया – “लड़ाई का इलज़ाम मेरे मत्थे मत लगाओ. तुम दोनों ही गलत हो. और दोनों ही सही भी. तुम दोनों ने जो देखा वह सच था. तुम आपस में इसलिए लड़ रहे हो क्योंकि तुम दोनों ने अपनी अपनी तरफ से मेरे कोट को देखा था. तुमने एक बार भी नहीं सोचा कि इस बात को दूसरे तरीके से देखे जाने का रास्ता भी खुला हुआ था."

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सच है, एक सत्य को कई तरह से देखा जा सकता है।