Monday, July 1, 2013

करै हरामी भांगड़ा सतगुरु खाय पछाड़


सरबत सखी जमावड़ा – २

-संजय चतुर्वेदी

सरबत सखीयन देख कै लम्पट रहे दहाड़
करै हरामी भांगड़ा सतगुरु खाय पछाड़

सरबत सखी निजाम हित बोला चतुर सुजान
हिन्दी कविता की बनी अब बिसिस्ट पहचान

सखी पन्थ निर्गुन सगुन दुर्गुन कहा न जाय
सखियन देखन मैं चली मैं भी गयी सखियाय

कल्चर की खुजली बढ़ी जग में फैली खाज
जिया खुजावन चाहता सतगुर रखियो लाज

कवियों ने धोखे किये कविता में क्या खोट
कवि असत्य के साथ है ले विचार की ओट

(ये रचनाएं 'वसुधा' में सन २००३ में छपी थीं)



4 comments:

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बढिया, बहुत सुंदर

आर. अनुराधा said...

वाह, 2003 की कविताएं, लगता है, अभी-अभी लिखी हैं, आज के हालात पर।

प्रवीण पाण्डेय said...

सन्

प्रवीण पाण्डेय said...

सन्नाट व झन्नाटेदार