Thursday, July 11, 2013

शायद काम में ही उसके कुछ रही होगी बात


उस अभागे को देखिये

-संजय चतुर्वेदी

पैदा होते ही माँ गई, पिता ने उसे मारा
जब तक ज़िन्दा रहा ब्राह्मणों ने उसे मारा
मरने के बाद कर्मकांड ने उसे मारा
जब उसके एतिहासिक मूल्यांकन का वक़्त आया
अकादमियों ने उसे मारा
आधुनिकों ने उसे मारा
संस्कृति को लेकर जब राजनैतिक ध्रुवीकरण हुए
साम्प्रदायिकों ने उसे मारा
धर्मनिरपेक्षों ने उसे मारा
जिसने मारने की इस परम्परा में ख़लल डाला
उसकी पिटाई हुई
दलितवादियों ने उसे मारा
नारीवादियों ने उसे मारा
यानी जो भी विमर्श
अपने दौर का फैशनेबल, जबर और शासक विमर्श रहा
नागर विमर्श रहा, धाकड़ विमर्श रहा
उसने बिना चूके उसे मारा
शायद काम में ही उसके कुछ रही होगी बात
कि वह संसार के महानतम कवियों में महान
और सबसे पायेदार धरोहरों में पायेदार दिखता है.

(नया ज्ञानोदय, सितम्बर २००५ में प्रकाशित. चित्र - विख्यात चित्रकार इगोन शीले की पेंटिंग - द पोएट)

1 comment:

Alpana Verma said...

सबने दुत्कारा मगर वक़्त का वो होगा प्यारा इसलिए याद किया जाता है.
कई संदर्भ जोड़ती कविता