Saturday, July 13, 2013

उसके हाथों में कुतुबनुमा पैरों में चप्पलें थीं

शहर से मेरे बाहर होने के कारण कल संजय चतुर्वेदी की कविताओं की सीरीज़ न चाहते हुए भी बाधित हो गयी. आज उसी क्रम में आगे 'इण्डिया टुडे' में मई १९९४ छपी उनकी यह महत्वपूर्ण कविता–


जन्मपत्र

-संजय चतुर्वेदी

जातक जब इस संसार में आया
विनी मंडेला और इमेल्डा मार्कोस में फ़र्क करना मुश्किल हो चुका था
और पचासी प्रतिशत जमीन पर पंद्रह प्रतिशत गोरों के बाज़ार ने
नेल्सन मंडेला का प्यार की दुनिया में स्वागत किया
दोनों के पास दूसरा कोई रास्ता बाकी नहीं था
रवांडा की लाशें झील में इकट्ठा होने लगी थीं
विचारों पर हरकतुल हथियार थी
कश्मीर में कभी हरकतुल अंसार थी कभी हरकतुल सरकार
लाखों लोग अपने ही देश में शरणार्थी थे
बुद्धिखोरों में मक्कार चुप्पी थी
या फिर उन्होंने ज़ोर-ज़ोर से बताया
यह हरकतुल संसार है इसे साम्प्रदायिक न माने
ये और बात है कि एक सम्प्रदाय के बहुजन
मैदानी इलाक़े में पिकनिक मनाने को आमादा हैं

हिन्दुस्तान में कम्युनिस्ट एक दूसरे पर थूकने में मशगूल थे
और एक अख़बारनुमा माफ़िया के लफंगों ने
जनता के सामने औरतों को पीट डाला
और कुछ लोगों को अचानक मालूम हुआ
नागरिक कितना निहत्था है
और क़स्बे में भले आदमी की तरह रहना
अपराधी की तरह रहने से अधिक दुश्वार है
और अपनी बुनियादी इज्ज़त को बचाना
एक रोज़ाना की लड़ाई है
और रोज़ाना लड़ना दंडनीय है
एक दरोगा चेक से रिश्वत ले कर मुस्कुरा रहा था
कि यह उसकी मॉडर्न सेंसिबिलिटी थी
और हम पिटकर भी अपनी जीत मानते थे
यह हमारी मॉडर्न सेंसिबिलिटी थी
अपराधी हमारे पैर पर खड़े होकर पेशाब कर रहे थे
और कवियों ने एक कार्यशाला का आयोजन किया था
लौकियों की मोहौब्बत और कद्दू के गीत की गहराईयाँ

जिनके पास सब कुछ था
वे अपराधी हो चुके थे
जिनके पास बहुत कम था
उन्हें क़ानून से डरना सिखाया जा रहा था
अस्पतालों में बीमारों की फ़जीहत थी
सड़कों पर बेकारों को नसीहत
देश के चकलों में फंसी चालीस प्रतिशत स्त्रियाँ
अठारह साल से कम उम्र की थीं
और मुट्ठी भर लोगों की परचेज़िंग पावर बढ़ा कर
जादूगर हमें लिबर्टी की और ले चला
आठ आने की दवा अस्सी रुपये में मिलती थी
और अस्सी करोड़ रुपये एक फ़ोन पर मिल जाते थे
भारतीय संस्कृत की कुछ ख़ास चीज़ें
कुछ ख़ास लोगों में कुछ ख़ास तरीके से बिकती थीं
और पद्मखोरों की हरामखोरी के लम्बे इंतज़ाम थे
दिल्ली में इंडिया एक सेंटर था
जो इंटरनेशनल था
उधर प्रधानमंत्री ने बिल क्लिंटन से हाथ मिलाया
और अचानक हमने सुष्मिता सेन के बारे में जाना
जो पिछले दस सालों में बदहाल देशों से आई सातवीं विश्व सुन्दरी थी
जादू इंसान की अक्ल पर क़ादिर था
और मुफ़लिसों के पिछले दरवाज़े से धड़ाधड़ हूरें निकल रही थीं
कि सेक्स और संस्कृति
आर्थिक बदलाव में
स्ट्रक्चरल एडजस्टमेंट का हिस्सा थे
कि सेक्स में सही होना बहुत ज़रूरी था
कि सेक्सी होना
सेक्स में सही होना था
कि कितनी बार ऐसा लगता था
कि राजनीति में सही होने का कोई मतलब नहीं रह गया है
और सेक्स में जो विचार है उसको क्या हो जाता है
और इंद्र के किले अगर मजबूत हो गए
तो कामदेव एक भडुआ बन कर रह जाएगा

बहुजन के नाम पर लफंगई
और क्रांति के नाम पर दलाली स्थापित संस्थाएं थीं
नौकरशाही में अचानक नायक पैदा होने लगे थे
एक बददिमाग़ और बदज़ुबान आदमी
जो तिकड़म और कॉलगर्ल चरित्र की बजह से शीर्ष तक पहुंचा था
धीरे -धीरे सारे हिन्दुस्तान को कॉलगर्ल बता चुका था
मझोली समझ के मझोले लोगों को लगा यह आया हीरो हमारा
और उन्हें ठीक ही लगा
एक लगभग अनजान महिला की गर्दन पकड़ कर
उसे प्रधानमंत्री बनाने की कोशिशें हो रही थीं
एक निर्वस्त्र और प्रजापीड़ित राजा
अपनी तिकड़म में मार खाने के बाद
अब सुकरात के समाधि लेख की प्रूफ़रीडिंग कर रहा था
ख़ून की अंतिम बूँद तक जनता की सेवा करने का ऐलान
करिश्मा कपूर ने किया

मानव समाज में समझदारी की ऊटपटांग स्थिति थी
कुछ दिन पहले बिना किसी व्यापक दबाव के
पोप ने गैलीलियो से मांफी माँगी
और पवित्र पुस्तकों पुनर्व्याख्या होनी चाहिये ऐसा कहने पर
मुल्लाओं ने एक औरत की मौत का फ़रमान जारी कर दिया
ब्राज़ील के खिलाफ जो भी खेलता था
खेल को जेल बना कर खेलता था
और गालियाँ ब्राज़ील को पड़ती थीं
जैसे कि दूसरों के खेल मैं भी सकारात्मक तर्क का प्रवेश
ब्राज़ील की ही जिम्मेदारी थी
मुशायरा मंच के पीछे होने लगा था
और कवियों के चेहरे देख कर लगता था
जैसे मुशायरा लूटने में शाइरी लुटी हो
धीरे- धीरे विचार की जगह ख़बरें ले चुकी थीं
और ख़बरों की जगह विज्ञापन
यह माना जाने लगा था
कि विचार दो घंटे में पुस्तकालय से प्राप्त किये जा सकते हैं
और यह भी माना जाने लगा था
कि उनसे दूर रहना कॉस्ट इफ़ेक्टिव रहेगा
फिर भी दक्षिण अफ्रीका के अधिकाँश लोगों ने
ग़ज़ब का धीरज और समझदारी दिखाई
और दुनिया के तमाम लोगों को निराश कर दिया

सुखों और उम्मीदों से भरी इस वसुंधरा पर फैला समर्थ मानव समाज
जो अन्य प्राणियों पर कब्जा कर चुका था
और जिसे सितारों से कोई ख़ास ख़तरा नहीं था
प्लास्टिक को लेकर चिंतित था
जो पर्यावरण में प्रदूषण
और गरीबों के पैर में चप्पल बन कर आई थी
समेकित संसार मैं जब संचार ने विश्व को एक गाँव बना दिया था
बहुजन अभिजन के लिए प्रदूषण थे
अभिजन बहुजन के लिए
इनका पेट फाड़ कर निकला मध्य वर्ग
दोनों के लिए प्रदूषण बन चुका था
और ऐसे में जातक ने सांस ली
उसके माता पिता के पास
यह बता पाने की प्रचलित सुविधा नहीं थी
कि रास्ता इधर से है
प्रज्ञा और प्रचुरता के साथ पुरखों से उसे प्रदूषण मिला
उसके हाथों में कुतुबनुमा
पैरों में चप्पलें थीं. 

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