एक आदमी गुज़रता है
-संजय चतुर्वेदी
गर्मी की दोपहर से
जैसे जीवद्रव्य से गुज़रता हो डी एन ए
जैसे समय गुज़रता ही पृथ्वी से
ऊंघती हुई सड़क पर
पिघला है पुरखों का कोलतार हीलियम के ताप से
एक आदमी गुज़रता है ओज़ोन की परतों से
उस पर से गुज़रती है एक बस
एक एयरबस
क्लोरोफ़िल से चलने वाली एक रेलगाड़ी खड़ी है
दो हज़ार पन्द्रह के स्टेशन पर
दुनिया बर्बाद हो चुकी है
रेडियो सक्रियता और विवेक की निष्क्रियता से दो बार
जबकि संकट ऐसा नहीं है
दो हज़ार पन्द्रह के स्टेशन पर एक आदमी गुज़रता है
जिस वक़्त गुज़रता है टोही विमान एल्फ़ा सेंटॉरी से
जिस वक़्त रेडियो सन्देश गुज़रता है भ्रूण से
इतिहास और फूलों के बीच रास्ता बना कर
हाथ में झाडू लिए एक आदमी गुज़रता है
सृष्टिकर्ता के रास्ते से एक आदमी गुज़रता है
परियों के रास्ते से एक आदमी गुज़रता है
फ़ैसले के दिन एक आदमी गुज़रता है
जैसे गुज़रता हो बरमूडा त्रिकोण प्रकृति के नियमों से
जैसे गुज़रता हो कोई चुटकुला
समकालीन साहित्य के परिदृश्य से
जिन इलाक़ों में ख़ुदा की आवाज़ नहीं पहुंचती
एक आदमी गुज़रता है.
(‘पल प्रतिपल’ वर्ष १९९२ में प्रकाशित)
2 comments:
बढिया, बहुत सुंदर
92 में 2015 की कल्पना। सच के करीब।
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