जनता
के पास ये विशेषाधिकार नहीं थे
-संजय
चतुर्वेदी
एक
गणतंत्र में
एक
समय ऐसा आया
विकास
और उत्साह का
जब
एक साथ दस बारह प्रधानमंत्री काम करने लगे
गरीबों
की खातिर मालिकाओं जैसा जीवन जीने वाली
एक
अतिप्रधानमंत्री की बेटी भी लगभग प्रधानमंत्री थी
और
तिलक करके बेटे का कार्यकाल निश्चित कर दिया गया था
एक
जो जमानत पर प्रधानमंत्री था
मुख्यमंत्री
का अतिरिक्त कार्यभार देखता था
हालांकि
दोनों पदों पर दूसरे लोग बैठे हुए थे
एक
सूबाई स्तर के प्रधानमंत्री ने नदियों के सवाल पर
अचानक
अपने राज्य को स्वतंत्र घोषित कर दिया
एक
ने विदेश मंत्रालय सम्हालने से पहले ही प्रधानमंत्री की तरह
बोलना
शुरू कर दिया था
सबसे
बड़ा प्रधानमंत्री तो वित्तमंत्री साबित हुआ क्योंकि उसे सटोरियों का समर्थन था
और
वह अन्य किसी की परवाह करता भी नहीं था
इनमें
सबसे भद्र और ईमानदार छवि का प्रबंधन वह कर सका
जो
फर्जी सर्टिफिकेट के जुगाड़ से सत्ता में
आया
और
जिसके नसीब में
वर्ल्ड
बैंक और कम्युनिस्टों से एक साथ समर्थन का सोज़ोगुदाज़ कारनामा था
संविधान
प्रधानमंत्रियों की इस धक्कामुक्की से पहले ही पिलपिला चुका था
लेकिन
एक दिन
जब
दो-तीन सांसदों वाला एक प्रधानमंत्री
अचानक
फरार या लापता या कुछ इसी तरह का हो गया
जिसकी
व्याख्या संसद भी नहीं कर पाई
तो
उसे भी फरार या लापता होना पड़ा
विपक्ष
संसद से फरार था
सत्ता
पक्ष लम्बे समय तक फरार रहने के बाद ट्रेज़री बेंच पर आया था
साधारण
आदमी एक ऐसी स्थिति में कब का आ चुका था
कि
अपने साथ अपराध होने पर
वह
कोई संवैधानिक उत्तर दे ही नहीं सकता था
उसके
सामने सिर्फ़ दो रास्ते थे
बलात्कार
सहन करे
और
इस तरह आत्महत्या करे
या
प्रतिअपराध करे
लोकतंत्र
जिसकी जमानत पर टिका था
उनके
फरार होने की संवैधानिक सुविधाएँ तैयार की जा रही थीं
जनता
के पास ये विशेषाधिकार नहीं थे
सो
वह धीरे-धीरे लापता हो रही थी.
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