Monday, July 22, 2013

मनोहारी सिंह का साक्षात्कार – २

(पिछली क़िस्त से आगे)


बंबई आने के बारे में आपने कब सोचना शुरू किया था?

जोसेफ़ न्यूमैन १९५० में एच.एम.वी. छोड़कर ऑस्ट्रेलिया बसने चले गए थे. मैंने भी १९५२ में एच.एम.वी. से विदा ले ली लेकिन उसके पहले मेरा परिचय सलिल चौधरी और हेमंत कुमार जैसी शख्सियतों से हो चुका था. तब मैंने फुर्फो रेस्तरां जॉइन कर लिया और वायोलिन वादक स्टेनली गोम्स के साथ मिलाकर पहला भारतीय बैंड स्थापित किया.

कलकत्ता के अपने शुरुआती दिनों में मैं सलिलदा के गीतों के लिए बजा चुका था. वे मुझे बहुत पसंद करते थे और उन्होंने मुझे बंबई चलने को कहा. हालांकि मेरा मन था पर पक्का नहीं. अलबत्ता मैंने उन्हें कलकत्ता के अपने पार्टनर बासु चक्रवर्ती का नाम सुझा दिया. बासु (लोग अब उसे बासुदा के नाम से जानते हैं) तब मेरा पड़ोसी था. वह बंगाली फ़िल्मी गीतों में वायोला और चेलो बजाता था. मैं अंततः १९५८ में अपना मन बनाकर बंबई आ गया.

बंबई की आपकी सबसे शुरुआती यादें कैसी हैं?

जब मैं बंबई आया सलिलदा ने मुझे एस.डी. बर्मन, सी. रामचंद्र, चित्रगुप्त, शंकर-जयकिशन, मदन मोहन, ओ.पी. नैयर और नौशाद जैसे संगीतकारों से मिलवाया. लेकिन बर्मनदा पहले थे जिन्होंने मुझे अपनी फ़िल्म ‘सितारों से आगे’ (१९५८) के लिए याद किया. यह अलग बात है कि जब मैं स्टूडियो पहुंचा तो सारे गानों की रेकॉर्डिंग हो चुकी थी. बैकग्राउंड म्यूजिक बॉम्बे लैब्स में बन रहा था; मुझे उसमें बांसुरी बजाने का मौका दिया गया. वहीं मेरी मुलाक़ात जयदेव, लक्ष्मीकांत, पंचम और उस्ताद संगीतकार सुमंत राज से हुई.

धीरे-धीरे मैंने सभी कम्पोजरों को बतला दिया कि मैं सैक्सोफोन और मैन्डोलिन भी बजा लेता हूँ. एक दिन पंचम ने मुझे बर्मनदा की एक रेकॉर्डिंग के लिए बुलाया. लक्ष्मीकांत ने मुझसे कहा कि रेकॉर्डिंग के लिए मैं अपना मैन्डोलिन निकाल लूं. बॉम्बे लैब्स में फ़िल्म ‘काला पानी’ के लिए “अच्छाजी मैं हारी” की रेकॉर्डिंग चल रही थी. आपको याद होगा इस गाने के पहले स्टेन्जा इंटरलूड  में दो मैन्डोलिन बजते हैं. एक मेरा बजाया हुआ है दूसरा लक्ष्मीकांत का. इसी दौरान मैंने ‘काला बाज़ार’ फ़िल्म के “सच हुए सपने तेरे मेरे” गीत के लिए सैक्सोफोन और मैन्डोलिन बजाया. जो भी हुआ हो इस पीस पर लोगों का ज़्यादा ध्यान नहीं गया. लेकिन अब मुझे सैक्सोफोन बजाने के लिय्मित मौके मिलने लगे थे.

क्या उस ज़माने के या उसके पहले के किसी सैक्सोफोन वादक ने आप पर प्रभाव डाला था?

हाँ मुझे रामसिंह के सैक्सोफोन वादन से बहुत प्रेरणा मिली. रामसिंह अनिल बिस्वास के सहायक के बतौर काम करते थे. उनके ओब्लिगादो पीसेज और सोलो सैक्सोफोन वादन ने मुझ पर गहरा असर डाला.

आपके शुरुआती दिनों में कौन सी फ़िल्म या गीत आपके हिसाब से आपका सबसे बड़ा ब्रेक मानी जाएगी?

बर्मनदा मुझे अधिक से अधिक मौके देने लगे थे और मेरा पहला सोलो सैक्सोफोन वादन ‘लाजवंती’ के गीत ‘गा मेरे मन गा” के लिए था. गाना दादर के रमन स्टूडियो में रेकॉर्ड हुआ था. आप इस पीस को गाने के दोनों अंतरों में सुन सकते हैं. इस पर हर किसी का ध्यान गया, लक्ष्मीकांत ने खासतौर पर इसे याद रखा.

कल्याणजी-आनंदजी की ‘सट्टा बाज़ार’ के गाने “तुम्हें याद होगा” के लिए मुझे बुलाया गया. लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल उनके सहायक थे. रिहर्सल श्री साउंड रेकॉर्डिंग स्टूडियो में चल रही थी. गाने से लक्ष्मीकांत बहुत ख़ुश नहीं थे और उन्होंने हम सब को अगले दिन महबूब स्टूडियो बुलवाया. उन्होंने मुझसे कहा कि मैं रिहर्सल का पीस सोलो बजाकर दिखाऊँ. सोलो पीस बजाने का मेरा बहुत मन था पर मैंने उनसे पूछा कि क्या ऐसा संभव होगा. उन्होंने मेरा हौसला बढाते हुए कहा कि वे बाकी लोगों को मना लेंगे. जब पीस रेकॉर्ड हो रहा था लक्ष्मीकांत ने प्यारेलाल को रोक कर कहा कि अब मैं सोलो बजाऊंगा. मेरा वह सोलो रातोंरात हिट हुआ और संगीतकार के रूप में मेरे करियर के लिए वह एक बड़ा मरहला था. उसने फ़िल्म संगीत का समूचा संसार मेरे लिए खोल दिया.

(जारी)     


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