(पिछली
क़िस्त से आगे)
उन
दिनों आप म्यूजिक अरेंजिंग का काम भी कर रहे थे?
‘इंसान
जाग उठा’ के बाद मैं बासु चटर्जी के साथ एस. डी. बर्मन का आधिकारिक अरेंजर बन गया.
हाँ धुनें बर्मनदा ही बनाया करते थे. साथ साथ मैंने ‘सोलवां साल’ ‘बात एक रात की’
और १९६५ की लैंडमार्क फ़िल्म ‘गाइड’ का संगीत भी अरेंज किया.
क्या
लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल बर्मनदा की टीम के नियमित संगीतकार थे?
लक्ष्मीकांत
थे. प्यारेलाल कभी कभी टीम का हिस्सा बनते थे. मुझे एक घटना अब तक याद है. ‘माया’
फ़िल्म में सलिलदा के गीत ‘जा रे उड़ जा रे पंछी’ में मेरे बांसुरी और सैक्सोफोन पीसेज
सुनने के बाद प्यारेलाल जी ने मुझे सौ रूपये का नोट दिया था. ख़ुद प्यारेलाल उस गीत
में ग्रुप वायोलिनिस्ट के तौर पर शामिल थे.
आपने
जयदेव जी का ज़िक्र किया था. एस. डी. बर्मन के सहायक के रूप में उनकी क्या भूमिका
होती थी?
वे
अन्य संगीतकारों जैसे सुमंत राज, लक्ष्मीकांत और पंचम के साथ संगीत निर्माण में
सहयोग दिया करते थे
‘काला
बाज़ार’ का गीत “न मैं धन चाहूं” मुझे काफ़ी कुछ जयदेव जी का बनाया लगता है ...
आप
सही कह रहे हैं. गीत की धुन और कम्पोजीशन दोनों जयदेव जी के थे. उनकी धुनों को हम ‘जलेबी’
कहा करते थे क्योंकि उनमें इतने सारे घुमाव और मोड़ होते थे. लेकिन वे क्या शानदार
संगीतकार थे! बेहतरीन!
एक
साधारण श्रोता के लिए हमें बताइये कि सैक्सोफोन में ऑल्टो, टेनर और सोप्रानो के
बीच क्या फर्क है.
ऑल्टो
का इस्तेमाल धुन को भिगोने लिए होता है. सोप्रानो ऑल्टो से एक ओक्टेव ऊंचा होता है
जबकि टेनर एक ओक्टेव नीचे. सोप्रानो सैक्सोफोन आमतौर पर सीधे होते हैं लेकिन कभी
कभार उनकी गर्दन तनिक मुड़ी हुई होती है. ऑल्टो सैक्सोफोन छोटे और हलके होते हैं
जबकि टेनर सैक्सोफोन बड़े और भारी. टेनर सैक्सोफोन की आवाज़ गहरी और भारी होती है.
हालांकि तीनों का इस्तेमाल मैलोडी इंस्ट्रूमेंट्स की तरह होता है, उन्हें संगीत की
वांछित रेंज के हिसाब से छांटा जाता है खासतौर पर जैज़ में. तीनों का इस्तेमाल सोलो
पीसेज बजाने में भी किया जा सकता है.
क्या
आप तीनों को बजाते थे?
हाँ,
शुरू में. ‘शोले’ के “महबूबा महबूबा” और ‘रॉकी’ के “क्या यही प्यार है” जैसे गानों
में आप मेरा सोप्रानो सैक्सोफोन सुन सकते हैं. उन दिनों मैं मुख्य सोप्रानो
सैक्सोफोन प्लेयर हुआ करता था. अब मैं ज़्यादातर ऑल्टो सैक्सोफोन बजाता हूँ. पिछले
कई सालों से श्यामराज एक उस्ताद टेनर सैक्सोफोन वादक हैं
क्या
ट्रौमबोन, ट्रम्पेट और सैक्सोफोन आपस में बहुत ज़्यादा फर्क होते हैं?
हाँ,
उनसे निकलने वाली आवाज़ें फर्क होती हैं. सलिलदा इन वाद्यों का शानदार इस्तेमाल
करते थे; वे इन्हें सोलो इंस्ट्रूमेंट्स के तौर पर बरतते थे. मिसाल के लिए आप ‘आनंद’
के “ज़िन्दगी कैसी है पहेली” में ट्रम्पेट की आवाज़ और ‘माया’ के “जा रे उड़ जा रे
पंछी” के सैक्सोफोन की आवाज़ का अंतर पकड़ सकते हैं.
(जारी)
No comments:
Post a Comment