अवधूता गगन घटा गहरानी रे||
पश्चिम दिशा से उलटी बादल, रुम झूम बरसे मेहा
उठो ज्ञानी खेत संभारो, बह निसरेगा पानी ||
निरत सुरत के बेल
बनावो, बीजा बोवो निज धानी
दुबध्या दूब जमन
नहिं पावे, बोवो नाम की धानी ||
चारो कोने चार
रखवाले, चुग ना जावे मृग धानी
काट्या खेत भींडा
घरल्यावे, जाकी पुरान किसानी ||
पांच सखी मिल करे
रसोई, जिहमे मुनी और ग्यानी
कहे कबीर सुनो
भाई साधो, बोवो नाम की धानी||
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