संगीतकार-गायक जगनमय मित्रा जिन्हें दुनिया जगमोहन सुरसागर के नाम से जानती है १९४०-१९५० के दशकों में एक जाना-पहचाना नाम थे. उन्होंने कमल दास गुप्त के लिए कई ग़ैर फ़िल्मी गीत गाये. बाद में उन्होंने फ़िल्मी गीत भी गाना शुरू किया – १९४५ की आगा जान, कुसुम देशपांडे, साहू मोदक और लीला देसाई अभिनीत फ़िल्म ‘मेघदूत’ में उनका गाया गीत “ओ वर्षा के पहले बादल” बेहद लोकप्रिय हुआ.
१९५५ में उन्होंने फ़िल्म ‘सरदार’ के लिए संगीत
रचना की – फ़िल्म में बीना राय, निगार सुल्ताना और अशोक कुमार थे. लता मंगेशकर के अपने
सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक “प्यार की ये तल्खियाँ” इसी फ़िल्म में गाया था.
कुलीन घर से सम्बन्ध रखने वाले जगमोहन को संगीत
के संसार में आने के लिए बहुत सारे विरोध का सामना करना पड़ा. उनके रईस ज़मींदार घरवाले
नहीं चाहते थे कि उनका बेटा पेशेवर गवैया बने.
लेकिन उस ज़माने के महान शास्त्रीय संगीतकारों
को सुनने के बाद जगमोहन ने फैसला ले ही लिया. गुरु की तलाश उन्हें पोंडिचे के
दिलीप कुमार के पास ले गयी. दिलीप ने जगमोहन का गाना सुनने के बाद उन्हें अपनी शागोर्दी
में ले लिया. अपने छात्र में दिलीप बाबू ने व्यक्तिगत रूचि दिखाई और जगमोहन ने
मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी – जल्द ही अपने कॉलेज के ऑल बंगाल म्यूजिक कॉम्पीटीशन
के ध्रुपद, टप्पा, ठुमरी और कीर्तन वर्ग में उन्होंने पहला स्थान पाया. बाद में
जाने माने संगीतकार कमल दास गुप्त के साथ उन्होंने कई गीत गाए.
१९४५ में उन्हें “सुरसागर” का खिताब मिला. रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गाये उनके गीत एचएमवी ने
रेकॉर्ड किये और जल्द ही वे बंगाल के घर-घर में जाने जाने लगे. फ़िल्म ‘मेघदूत’ का
संगीत हिट हुआ और तमाम रेडियो स्टेशनों में बजने वाले उनके गाये गीत “ओ वर्षा के
पहले बादल” के बाद वे सारे देश में प्रसिद्ध हो गए.
इन्हीं जगमोहन के गाये दो गीत आपके वास्ते
-
पहले - ओ वर्षा के पहले बादल (संगीत कमल दास
गुप्त का और बोल फैयाज़ हाशमी के)
अब ‘सरदार’ फ़िल्म से – क्या मज़े की बात है
(संगीत भी जगमोहन का ही है और बोल लिखे हैं कैफ़ इरफ़ानी ने)
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