Thursday, October 24, 2013

मन्ना डे नहीं रहे


पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई मन्ना डे का इंटरव्यू

मन्ना डे का असली नाम है प्रबोध चन्द्र डे. १ मई १९१९ को जन्मे मन्ना दा ने हिन्दी और बंगाली के अलावा गुजराती, मराठी, मलयालम, कन्नड़, असमिया, भोजपुरी, अवधी, पंजाबी, मैथिली, कोंकणी, सिंधी और छत्तीसगढ़ी में पार्श्वगायन किया है. १९४२ में आई फ़िल्म तमन्नासे उन्होंने अपने पार्श्वगायन करियर का आग़ाज़ किया था. वे अब तक कोई चार हज़ार गाने रेकॉर्ड करा चुके हैं. पद्मश्री, पद्मभूषण और दादा साहेब फाल्के जैसे उच्चतम सम्मान पा चुके मन्ना दा अपने जीते जी एक गाथा बन चुके हैं.

इस साल ८ जून को उन्हें बंगलौर के एक अस्पताल में भरती कराया गया और ९ तारीख़ को उनकी मृत्यु की अफवाहें तक फैलना शुरू हुईं. लेकिन उनका इलाज कर रहे चिकित्सकों ने इन अफवाहों को विराम देते हुए बताया कि वे बेहतर हैं और वेंटीलेटर पर हैं. ५ जुलाई को उन्हें वेंटीलेटर से हटा लिया गया और अब वे पहले से कहीं बेहतर हैं. हमारी प्रार्थना है मन्ना दा शतायु हों.

लिटलइण्डिया डॉट कॉम ने मन्ना दा का एक इंटरव्यू २००३ में लिया था. आज वहीं से साभार उस का हिन्दी अनुवाद मैं आपके लिए पेश कर रहा हूँ.

भारत के पुरुष गायकों में वे सम्भवतया अंतिम लिविंग लेजेंड हैं जिनकी आवाज़ की नक़ल कर पाना किसी के भी बूते की बात नहीं रही. आज जबकि पुराने समय के हर गायक के क्लोन देखने को मिल जाते हैं इस गायक की निखालिस अतुलनीय आवाज़ वर्षों से वैसी ही बनी हुई है. ८४ की आयु में भी वे पूरी तरह चुस्त और तंदुरुस्त हैं और इसका प्रमाण उन्होंने हाल ही में अटलांटा की रोबिन रैना फाउंडेशन के लिए गरीब बेसहारा बच्चों के वास्ते धन जुटाने हेतु आयोजित एक कंसर्ट में लगातार चार घंटे गा कर दिया.

लिटल इण्डिया को दिए इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में शालीन कपड़े पहने मन्ना दा संगीत से भरे अपने जीवन और कम्पोज़र और गायक के तौर पर अपने करियर के बारे में तो बताते ही हैं, वे इस बात को भी रेखांकित करते चलते हैं कि अपने हिस्से का पूरा श्रेय न मिलने के बावजूद किस जिंदादिली और विनम्रतापूर्ण ह्यूमर के साथ उन्होंने अपने हरेक फ़र्ज़ को अंजाम दिया.

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बड़े होने और संगीत की आपकी शुरुआती स्मृतियाँ कैसी हैं?

अपने शुरुआती दिनों में अपने विख्यात चाचा के.सी. डे की वजह से मैं हमेशा संगीत से घिरा रहता था. लेकिन जब वे १३ की आयु में अपनी दृष्टि गँवा बैठे और अपने जीवनयापन के लिए संगीत का सहारा लेने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं बचा. परिवार में किसी और का रुझान संगीत की तरफ नहीं रहा. एक सज्जन ने उन्हें सहारा दिया क्योंकि उनकी निगाह में मेरे चाचा एक म्यूजिकल जीनियस थे, जो कि वे थे भी, और उन्हें बड़े उस्तादों के चरणों में बैठकर संगीत सीखने का मौका मुहैय्या करवाया.

बदले में चाचा ने अपना अर्जित ज्ञान मुझे और मेरे स्वर्गीय भाई को दिया, लेकिन इसके पहले उन्होंने साफ साफ शब्दों में हमें बतला दिया था कि उस तरह की संगीत शिक्षा के लायक बन पाने के लिए हमारे भीतर उत्कंठा होनी चाहिए और यह भी कि हमें उसके लिए कड़ी मेहनत करना होगी.

इसके अलावा हमारे परिवार की कोई म्यूजिकल हिस्ट्री नहीं है; हाँ यह बात दीगर है कि अलाउद्दीन खान साहब, स्वर्गीय विलायत खान के पिता इनायत खान जैसे और कई संगीतकार हमारे घर आते रहते थे क्योंकि ये सब मेरे चाचा के समकालीन थे.

हमारा संयुक्त परिवार था तब, जो अब भी है, और मेरे पिता, चाचा और मैं उसी घर में पैदा हुए थे. तब भी मेरे पिता और मेरे बड़े चाचा जो एक इंजीनियर थे और परिवार के सारे फ़ैसले ख़ुद ही ले लेने के हिमायती भी, ने साफ़ साफ़ कह दिया था कि मुझे पहले अपनी पढ़ाई पूरी करनी होगी और वे चाहेंगे कि मैं वकालत पढूं. अंडर ग्रेजुएट की पढ़ाई के बाद मेरे सामने दो रास्ते थे वकालत या संगीत. मैंने संगीत को चुन लिया. मेरे पिता इस से बहुत ख़ुश नहीं हुए पर मेरे चाचा ने मेरा बहुत समर्थन किया और मुझे सिखाना शुरू कर दिया. के. सी. डे ने कभी शादी नहीं की, सो मैं उनके बेटा जैसा बन गया, और जब तक मैं ज़रूरी चीज़ों का समर्पण करने को तैयार था, वे मुझे मेरे हर सपने को पूरा करने की राह तक ले जाने को तत्पर रहने वाले थे. तब तक मैंने संगीत की कोई औपचारिक दीक्षा कहीं से नहीं ली थी.

जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ अन्य बंगाली परिवारों की तरह संगीत हमारे बड़े होने का हिस्सा था, सो मैं संगीत की ध्वनियों के साथ ही सोया और जागा करता था, और चेतन-अचेतन दोनों तरह से संगीत को आत्मसात करने की कोशिश करता था. इसलिए जब मेरे चाचा ने मुझे सिखाना शुरू किया, मैं पूरी तरह से नौसिखुवा नहीं था.  

तो क्या आपको संगीत सीखने के दौरान उस कड़े अनुशासन से भी गुजरना पड़ा जिसके तहत गुरु अपने चेलों को बाकायदा सज़ा दिया करते थे गुरुओं द्वारा दिए जाने वाली सजाओं के ऐसे तमाम किस्से सुनने को मिलते हैं जैसे मिसाल के लिए अली अकबर खान को पेड़ से बाँध दिया गया था.

माफ़ कीजिये इस तरह की अप्रोच को मैं बहुत महत्व नहीं देता. मेरे चाचा काम निकलवाने के मामले में कठोर थे ज़रूर पर निर्दय और क्रूर तो हर्गिज़ नहीं. वे अनुशासन के हिमायती थे औए जिस दिन मैंने गायक बनने का फ़ैसला किया उन्होंने मुझे एक तानपूरा दिया और वे उम्मीद करते थे कि मैं उस पर भरपूर मेहनत करूंगा. मुझे मुक्केबाजी और कुश्ती जैसे आउटडोर खेलों का बड़ा शौक था और पतंग उड़ाना भी अच्छा लगता था. मैं अपने को ख़ासा बहादुर समझता था और जब भी संगीत का अभ्यास करने के बजाय मैं खेल रहा होता था तो वे मुझे डांट अवश्य लगाते थे लेकिन उस तरह नहीं जैसे कई दूसरे अपने छात्रों के साथ करते थे. उनकी चिंता प्रेम से उपजती थी और वे चाहते थे मैं अपना ध्यान सही जगह लगाऊँ.

लोगों को सुगम संगीत से परिचित कराने वालों में वे एक पायनियर की हैसियत रखते थे. हाँ और बहुत सारे लोगों को तो यह तक मालूम नहीं था कि मेरे चाचा शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित थे और ध्रुपद, धमार, ख़याल, ठुमरी, टप्पा और ग़ज़ल गाया करते थे. वे खासे वर्सेटाइल थे और उन दिनों जब हर कोई शास्त्रीय संगीत ग़ा रहा था वे सुगम संगीत गाया करते थे. यह उनका मास्टर स्ट्रोक था. मुझे आज तक यह समझ में नहीं आता कि उन्हें इस बात का कैसे भान हुआ कि शास्त्रीय संगीत को समझने वाले सीमित होते हैं और यह कि संगीत को सरल बना देने से उनके श्रोताओं में अच्छी वृद्धि होगी और ऐसा हुआ भी. उन्होंने अपने संगीत को ऐसे खांचे में ढाला कि आम आदमी भी उसे समझ सके और उस के साथ आइडैन्टीफाई कर सके. परिणामतः बंगाल में उन्हें पूजा जाता था. जब उन्होंने भारतीय फिल्मों में गाना शुरू किया वे सारे भारत में रातोंरात प्रसिद्ध हो गए. मुझे उनके साथ कराची जाने की याद है. जब वे अपने लोकप्रिय गाने जैसे मन की आँखें खोल बाबाया तेरी गठरी में लागा चोर मुसाफिरगाना शुरू करते थे तो सारी ऑडिएंस उनके साथ गाना शुरू कर देती थी. वह अपने आप में अविस्मरणीय अनुभव था.

हालांकि आप के पास भी क्लासिकल संगीत की अथाह रेंज है आप ख़ुद सुगम संगीत को ज़्यादा पसंद करते हैं.

एक मज़बूत बुनियाद के लिए क्लासिकल की ट्रेनिंग ज़रूरी है लेकिन ईमानदारी से कहूं तो मैं शास्त्रीय गायन के लिए बना ही नहीं था. मेरी इस तथ्य में ज़्यादा रूचि नहीं कि आप बैठकर एक ही राग को दो-तीन घंटों तक गाते रहें. उसमें बहुत दोहराव होता है और श्रोताओं के धैर्य की खासी परीक्षा हो जाती है. के. सी. डे मेरे जीवन पर प्रभाव डालने वाले पहले व्यक्ति थे और बिलकुल शुरुआत से मेरी गायन शैली उन्हीं के गायन पर ढली है. ऐसा लगता है कि चीज़ों को समझ लेने की मेरी क्षमता भी ठीकठाक थी और उनके बजाए पीसेज को मैं टेबल पर जस का तस दोहरा सकता था और वैसे ही ग़ा भी लेता था. मेरे चाचा अपने दोस्तों को लेकर बड़े सतर्क रहते थे और चाहते थे कि मैं भी वैसा ही बनूँ. वे नहीं चाहते थे कि मैं रुचिहीन लोगों के साथ उठूं-बैठूं. अच्छा प्रभाव और सम्पूर्ण मित्रताएं बहुत ज़रूरी होती थीं और नैन आज तक इस बात का अनुसरण करता हूँ.

आपने कलकत्ता छोड़ा और गायन के क्षेत्र में हाथ आजमाने बंबई चले गए. कैसी रही वह यात्रा?

कलकत्ते का संगीत मुझे परेशान करने लगा था. वहां रबीन्द्र संगीत के अलावा कुछ था ही नहीं सो मैंने बंबई जाने का फ़ैसला किया अलबत्ता मुझे नहीं पता था कि यह सब इतना मुश्किल होगा. पहली बात तो यह थी कि बंगाली होने के नाते मैं एक बाहरी आदमी था और मुझे इस तरह के कमेंट्स सुनने को मिलते थे कि अरे बंगाली बाबू वापस बंगाल जाओ, अपने रसगुल्ले खाओ और वहीं रहो. मैं अपने चाचा के साथ गया था सो चीज़ें उतनी दुश्वार नहीं थीं. मैंने पांच साल तक उनके असिस्टेंट का काम किया और उस ज़माने के हिसाब से मुझे ५०० रूपये का शाही वेतन मिला करता था.

२२-२३ की आयु में मुझे अपना पहला ब्रेक मिला जब मैंने फ़िल्म रामराज्यके लिए ऊपर गगन विशालगाया और तुरंत मुझ पर एक धार्मिक गायक का ठप्पा लगा दिया गया. था तो मैं बीसेक साल का पर मुझे लगातार फिल्मों में बूढ़े दाढ़ी वाले किरदार निभाने के ऑफर मिला करने लगे. मेरे लिए यह खासा मुश्किल समय था. जाने माने फ़िल्म मेकर बिमल रॉय के लिए मैंने चली राधे रानी अंखियों में पानीगाया. वह बड़ा हिट हुआ और बिमल रॉय ने पूछा मन्ना तुमने स्क्रीन पर वह गाना देखा है?” जब मैंने न में जवाब दिया तो वे बोले कि मुझे उसे देखना चाहिए कि उसे देखकर दर्शक किस कदर प्रभावित हो रहे हैं.  सो मैंने वैसा ही किया और क्या देखा एक कोई बूढा दढ़ियल आदमी उस गीत को ग़ा रहा था. मैं तो ग़ुस्से में पगला ही गया. मैं दोहरी मनः स्थिति में था वापस कलकत्ता चला जाऊं या वहीं रहकर संघर्ष करता रहूँ.

क्या यह सच है कि उन दिनों एक तरह का गिरोह जैसा काम करता था कि संगीत निर्देशक ख़ास गायकों को ही लेते थे और बाकी लोगों को मौका नहीं मिल पाता था?

मुझे गिरोहों के बारे में कुछ नहीं मालूम पर स्ट्रगल करने में मुझे कोई बुराई नज़र नहीं आती. मेरे ख़याल से हम सब का अपना-अपना कोटा होता है और ऐसा नहीं है कि संगीत निर्देशकों ने जितना सब कम्पोज़ किया उसे मैंने ही गाया या किसी एक ने. हाँ अपने अपने पसंदीदा होते ही थे सबके और उसे मैं पार्ट ऑफ़ द गेमही मानता हूँ.

आपने इतने सारे महान संगीत निर्देशकों के साथ गाया है. क्या आप हमारे साथ कुछ यादें साझा करना चाहेंगे?

हां, मैंने सभी के लिए गाया. एस. डी. बर्मन अपनी तरह के अकेले थे. मैं उन्हें बचपन से जानता था क्योंकि वे भी मेरे चाचा से संगीत सीखते थे. मैं बर्मनदा से सदा आकर्षित रहता था क्योंकि वे किसी चीनी जैसे दिखाई देते थे और उनकी बगल में बैठकर मैं उन्हें गाते हुए देखा करता. मुझे उनकी नाक से गाने की शैली पसंद आती थी और कॉलेज के दिनों में मैं उन्हीं की गाने की शैली की नक़ल किया करता. उनके गाने की शैली टिपिकल पूर्वी बंगाल की थी और उन्होंने हिन्दी गानों में भी उस शैली को नहीं छोड़ा. उनकी आवाज़ बिलकुल अलहदा थी और वे एक ट्रेंडसेटर बने. वहां कौन है तेराको जिस तरह बर्मनदा गाते थे वैसे कोई नहीं गा सकता. वे मुझ से बहुत प्यार करते थे और हम अक्सर साथ साथ टेनिस खेलते थे. यह कहने में वे बड़े दयालु थे कि अगर कोई अपने दिल से किसी गाने को कम्पोज़ करे तो उन कम्पोजीशंस में आत्मा डालने का काम लता मंगेशकर और मन्ना डे ही कर सकते हैं. उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की बात हमेशा मेरे मन में रहती थी. एक बार उन्होंने ज़िक्र किया था कि मेरे गाए जिन दो गीतों ने उन्हें हिलाकर रख दिया थे वे थे – “पूछो ना कैसे मैंने रैन बिताईऔर काबुलीवालाका ऐ मेरे प्यारे वतन”.
हम लोग उस गाने की रिहर्सल कर रहे थे जब मेरे एक नज़दीकी दोस्त शर्मा जी ने उसे सुना तो वे बोले कि मन्ना तुम्हारी आवाज़ में ज़रा भी उत्साह नहीं है. न कोई जीवन. तुम गा क्या रहे हो? मेरी जगह बर्मनदा ने जवाब दिया कि गाने को ठीक इसी तरह गाया जाना है. उस का पिक्चराइज़ेशन अफगानिस्तान से आए एक गरीब काबुलीवाले पर होना था जो दिन भर काम करने के बाद थका मांदा भीड़ भाड़ वाले अपने डेरे में पहुँचता है जहां बाकी लोग सो चुके हैं. उसके बाद वह अपना रबाब बाहर निकालकर दुखी मन से उस देश के बारे में गाता है किसे वह अपने पीछे छोड़ आया है. मैं उसे उत्साह के साथ नहीं गा सकता था. इस गाने को सुनने के बाद सलिल चौधरी रोने लगे थे.

सलिल मेरे व्यक्तिगत दोस्त थे. वे न सिर्फ़ एक म्यूजिकल जीनियस थे, उनके लिखे गीतों की तब भी बहुत मांग रहती थी और इतने सालों बाद अब भी, हालांकि उन्हें गुज़रे ज़माना बीत चुका. वे सच्चे अर्थों में एक इंटेलेक्चुअल थे. आप उनके साथ कभी भी थोडा समय बिताकर आते तो इतनी चीज़ों के बारे अपने ज्ञान को सम्पन्नतर बनाकर लौटते थे. शंकर जयकिशन ने मुझे गाने के लिए शानदार गीत दिए. मैं शंकर के ज़्यादा नज़दीक था और वे सच्चे अर्थों में मेरी आवाज़ के प्रशंसक थे और बीस सालों तक इस जोड़ी ने मुझे ऐसे गाने दिए जो सालों साल सदाबहार बने रहेंगे. उनका वैविध्य और उनकी रचनात्मकता अविश्वसनीय थी. मुझे याद है जब भारत भूषण एक स्टार बन चुके थे मोहम्मद रफ़ी उनके सारे गाने गाया करते थे. शंकर ने बैजू बावराके लिए एक सुन्दर गाना रचा जिसे भारत भूषण के भाई शशि भूषण प्रोड्यूस कर रहे थे. जब शशि को पता ;आगा कि गाना मैं गाने वाला हूँ तो उन्होंने इस बात का विरोध किया. वे चाहते थे कि गाना रफ़ी से गवाया जाए. शंकर ने प्रतिवाद करते हुए कहा कि या तो गाना मन्ना डे गाएगा या वे कोई दूसरा संगीत निर्देशक खोज लें. मेरे सुर ना सजेगाने की यह कहानी है, और कहना न होगा गाना ज़बरदस्त हिट हुआ. बाद में जब शशि भूषण ने गाना सुना तो अभिभूत होकर मुझे गले से लगा लिया और बोले कि गाने को मुझ से बेहतर कोई नहीं ग़ा सकता था.

शंकर ने ही आपको शास्त्रीय गायन के पुरोधा भीमसेन जोशी के साथ केतकी गुलाब जूहीजैसा डूएट गाने का अवसर दिया था. कितना मुश्किल था वह?

भगवान जानता है कितना मुश्किल था. एक पूरी दास्तान है. शंकर ने कहा कि मन्ना कमर कस लो; अगली कम्पोज़ीशन तुम्हारे जीवन की कम्पोज़ीशन बनने वाली है. तुम्हें किसी के साथ एक क्लासिकल डुएट गाना है. किसके साथ गाना है यह नहीं बताया गया. मैंने कहा ठीक है और रियाज़ शुरू कर दिया. कुछ दिनों बाद मुझे बताया गया कि धुन बन चुकी है और मुझे तुरंत स्टूडियो पहुंचना है. वहां जा कर पता लगा कि पंडित भीमसेन जोशी के साथ गाना है. डुएट को नायक और उसके प्रतिद्वंद्वी पर फ़िल्माया जाना था. मुझे नायक के लिए गाना था जिसकी जीत होनी थी. मुझे कंपकंपी छूट गयी और मैंने कहा कि मैं उनके साथ गा कर जीत नहीं सकता. असंभव बात है.

सो मैं घर चला गया और अपनी पत्नी से कहा कि हमें कुछ दिन के लिए कहीं चले जाना चाहिए और तब तक नहीं लौटना चाहिए जब तक कि शंकर जयकिशन किसी और से उस गाने को गवा न लें.

मेरी पत्नी ने मुझ पर निगाह डालते हुए कहा कि तुम पर शर्म है. ऐसी बात तुम सोच भी कैसे सकते हो? और इसके अलावा तुम नायक के लिए गा रहे हो और तुमने उसे जिताना है. गाना बहुत मुश्किल था पर मैंने अपना सारा कुछ उसमें झोंक दिया और बाद में भीमसेन जोशी जी ने मुझसे कहा कि मन्ना साहब आप वाकई बहुत अच्छा गाते हैं. आप क्लासिकल गाना शुरू क्यों नहीं करते? मैं ने उनसे कहा कि मैं उनकी प्रेरक उपस्थिति के कारण शायद वैसा गा सका. बस इस से आगे नहीं! अनिल बिस्वास भी मेरे लिए उम्दा कम्पोजीशंस लाए पर असल चुनौती मुझे रोशन से मिली. अगर आप न तो कारवाँ की तलाश हैसुनेंगे तो शायद समझ सकेंगे मैं क्या कहने की कोशिश कर रहा हूँ. रोशन ने मुझे सावधान करते हुए कहा कि देखो मन्ना, रफ़ी नायक के लिए गा रहे हैं लेकिन तुम उस्ताद के लिए. फर्क नज़र आना चाहिए. जब मैंने आलाप लिया तो ख़ुद रोशन भी भौंचक्के रह गए. बोले तुमने ख़ुद को साबित कर दिखाया है.

ज़्यादातर संगीत निर्देशक मुझे इम्प्रोवाइज़ कर लेने देते पर नौशाद साहब कत्त्तई नहीं. या तो उनके बताए तरीके से गाइए या गाइए ही मत! सी. रामचंद्र बहुत नियमबद्ध थे लेकिन उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा. उन्होंने मुझे बतलाया कि डिक्शन और उच्चारण कितने महत्वपूर्ण होते हैं. वे किसी भी शब्द को ग़लत उच्चारित होते बर्दाश्त नहीं करते थे. वैसे भी मैं उच्चारण को लेकर बहुत सावधान रहता हूँ और इस बात को आप मेरे क्षेत्रीय गीतों में भी देख सकते हैं लेकिन इस मामले में सी. रामचंद्रन सबसे ज़्यादा मशक्कत करते थे.

अनिल बिस्वास ने यह भी कहा था कि आप इकलौते गायक थे जो हर गाने की नोटेशन लेते थे और एक ही टेक में गा भी देते थे और यह भी कि जिन गानों को रफ़ी, किशोर, मुकेश या तलत महमूद ने गाया उन्हें आप भी गा सकते थे लेकिन आपके गाए गानों को लेकर इन गायकों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता.

यह उनका बड़प्पन है. वे मुझे काफ़ी पसंद करते थे, लेकिन मैं नहीं मानता कि रफ़ी साहब को कोई छू भी सकता है. यह सच है कि मैं गानों की नोटेशन लिया करता था और एक ही रिहर्सल में उन्हें गा भी देता था. मैंने लता और आशा को नोटेशन लेना सिखाने की कोशिश भी की लेकिन शुरुआती उत्साह के बाद इन लडकियों ने वांछित मेहनत नहीं की.

हमें रफ़ी साहब के बारे में बताइये. बहुत कम लोग जानते हैं कि आपने रफ़ी को एक कोरस से छांट कर बाहर निकाला था और पहला ब्रेक दिलवाया था.

रफ़ी मुझसे जूनियर थे और जब मैं लीड सिंगर की जगह गा रहा होता था, कई बार वे कोरस में गाया करते थे. लेकिन बाद में मुझे अहसास हुआ कि उनके भीतर कितना दुर्लभ टेलेंट हैं और यह भी कि किसी भी क्षेत्र में वे अद्वितीय रहेंगे, खासतौर पर फिल्मों की प्लेबैक सिंगिंग में. मेरे मामले में कुछेक गाने अपनी तरह के अलग हैं अपर रफ़ी साहब की जहां तक बात है उन्होंने जो कुछ गाया वह अविश्वसनीय था. सच तो यह है कि कई बार मेरे चाचा के. सी. डे कोई धुन बना रहे होते और मैं उन्हें असिस्ट किया करता. एक बार वे जस्टिसनाम की फ़िल्म के लिए गाना कम्पोज़ कर रहे थे और मैं उनकी मदद कर रहा था. जब धुन बन गयी उन्होंने कहा कि रफ़ी को बता दो. मैंने कहा क्या बता दो. वे बोले यही कि धुन बन गयी है और उसे गाना गाना है. मैं काफ़ी आहत हुआ और मैंने पूछा क्यों? क्या मैं इसे नहीं गा सकता? चाचा बोले न तुम नहीं गा सकोगे. इसे बस रफ़ी ही गा सकता है. मैंने घमंड पी लिया और रफ़ी को बुलवा लाया. जब रेकॉर्डिंग ख़त्म हुई तो मुझे अहसास हुआ कि वाकई जिस तरह रफ़ी ने उस गीत को गाया वैसा मुझसे नहीं हो सकता था.

आपको किसके साथ गाने में ज़्यादा मज़ा आया? लता के साथ या आशा के?

मैंने जितने डुएट लता के साथ गाये हैं उतने किसी और के साथ नहीं गाए. मुझे लता सबसे पहले अनिल बिस्वास की एक रिहर्सल में मिली थीं. मैंने अटपटे कपडे पहने एक सांवली सी लड़की को वहां स्टूडियो में बैठे देखा. जब मेरी रिहर्सल ख़त्म हुई अनिल ने कहा मन्ना ये ह्रदयनाथ मंगेशकर की बेटी हैं. तुमने इसका गाना सुना है? उसके पिता गुज़र गए थे और उनका वक़्त खराब चल रहा था. मैं उसे सुनने को वहां बैठ गया और उसके गाना शुरू करते ही मेरी समझ में आ गया कि मेरे सामने एक असाधारण प्रतिभा गा रही है.

दोनों ही बहनें अतुलनीय हैं लेकिन आशा बहुत वर्सेटाइल है और उसके साथ गाने का मतलब होता था इम्प्रोम्पटू इम्प्रोवाइज़ेशन करते जाना और एक दूसरे को चुनौती देते हम ऊपर नीचे आगे पीछे होते रहते थे. इसमें बड़ा मजा था. लोग कहते हैं कि ये दो बहनें इंडस्ट्री में किसी और को घुसने नहीं देतीं. मैं कहता हूँ कि अगर यह सच है भी तो प्रतिभा और मेहनत के मामले में इन बहनों की बराबरी कौन कर सकता था?

ऐसा कौन सा गाना है जिसे सुनकर आप अपने से कहते हैं कि यह एक विस्मयकारी कम्पोजीशन है और आप उसके साथ न्याय कर पाने में सफल रहे?

मनोज कुमार की फ़िल्म उपकारका कसमें वादे प्यार वफ़ा’. इसे प्राण पर फिल्माया गया था जो फिल्मों में अक्सर विलेन की भूमिका किया करते थे. यह एक अलग क़िस्म का ओल था जिसने उनके एक्टिंग करियर को पूरी तरह बदल डाला था. उन्होंने मुझे फ़ोन कर कहा कि मन्नाजी मुझे ख़ुद पर एक गाना फिल्माए जाने का पहली बार मौका मिल रहा है. मनोज आपको मेरी भूमिका समझा देंगे. आप कृपा करके गाने को इतना मुश्किल मत गा देना कि स्क्रीन पर उसे दोहरा पाना मेरे लिए आसान न रह जाए. सुबह मनोज और मैंने गाने की रिहर्सल शुरू की. बीच में वे मेरे साथ एक समारोह में गए जहां मुझे गाना था. जब हम लौटे हमने गाना पूरा किया. गानों को लेकर मनोज इस कदर समर्पित आदमी थे और मेरे गाने पर उन्होंने जैसी तवज्जो दी उस से मुझे काफ़ी संतोष मिला.

राज कपूर के बारे में क्या ख़याल है? हालांकि अपने अधिकाँश गानों के लिए उन्होंने मुकेश की आवाज़ का इस्तेमाल किया, उनके कुछ यादगार गाने आपने गाए.

उनके क़द के फिल्मकारों के साथ काम कर सकना मेरे लिए बड़े फ़ख्र की बात रही. राजकपूर के साथ रेकॉर्ड किया गया हर गाना अपने आप में अविस्मरणीय होता था. उसे श्रेष्ठतम बनाने में वे किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतते थे. अक्सर वे एक ढोलक लेकर बैठ जाया करते और कहते चलो मज़े करते हैं. फ़िल्म चोरी चोरीके प्यार हुआ इकरार हुआके लिए हम पूरे ओर्केस्ट्रा के साथ रेकॉर्डिंग कर रहे थे और राज जी के आने का इंतज़ार था. वे बहुत लेट थे और तब पहुंचे जब हम पैक अप करने ही वाले थे. वे इतने विनम्र थे कि पैर छू कर लोगों से माफ़ी मांगने लगे, तब चाय का एक दौर चला और हम सब फिर से साथ बैठे. जब हम गा रहे थे राज ने थोड़ी स्पेस दिए जाने का अनुरोध किया और एक छाता माँगा. इस तरह सीन कम्पोज़ हुआ. सुबह से शुरू कर के हम रात के दस बजे तक रिहर्सल करते रहे क्योंकि हम उसमें इस कदर डूबे हुए थे. मुझे याद है जब मैंने मेरा नाम जोकरके लिए ऐ भाई ज़रा देख के चलोगाया था और जिसके लिए मुझे फिल्मफेयर अवार्ड मिला, मैं किसी प्रोग्राम के सिलसिले में बाहर था और करीब एक बजे रात लौटा. जैसे ही हमने रिहर्सल शुरू की राज ने, जिनके कान मधुर संगीत को इस कदर पहचानते थे, महसूस किया कि हमें एक वायोलिनिस्ट की ज़रुरत है. पांच वायोलिनिस्ट खोजे गए, उन्हें ट्रेन किया गया और हमने रेकॉर्डिंग शुरू की. फ़िल्म बनाने में उन दिनों इस तरह का समर्पण देखने को मिलता था.

हाल ही में महमूद गुज़र गए. आपने उनके लिए कुछ विस्मयकारी गाने गाए थे जैसे किशोर के साथ एक चतुर नारऔर फुल गेंदवा ना मारो”. महमूद एक तरह के अभिनेता बन गए थे, जब फ़िल्में उन्हें केंद्र में रख कर लिखी जाती थीं. उनके साथ गाने का अनुभव कैसा रहा?

बेहद शानदार. महमूद मेरे साथ बैठते थे और नोट्स लेते जाते थे और पूछते रहते थे कि मैं कैसे गाता हूँ वगैरह. मुझे गाता हुआ देखकर वे अपनी भंगिमाओं में मेरी आवाज़ की सारी गतियाँ और भावनाएं ले आया करते थे. वे बेहद दयालु और मजेदार इंसान थे.

लोग आपकी बंगाली कम्पोज़ीशन्स के बारे में हैरत करते नहीं थकते.

मैंने बंगाली में कोई २५०० गाने गाए हैं और उनमें से करीब ९५% का संगीत भी कम्पोज़ किया है. आप यक़ीन नहीं करेंगे कि पूर्वी बंगाल यानी वर्तमान बंगलादेश के हर घर में मेरी ये रचनाएं मिला करती हैं. वहां जब भी मैं गाता हूँ लोगों को मेरे सारे गाने याद होते हैं. अगर मैं बोल भूल जाता हूँ तो श्रोता उन्हें पूरा करते हैं. मेरा मन कृतज्ञता से भर उठता है. यह शानदार है कि इतनी बड़ी तादाद में लोग अब भी मेरे गीतों को प्यार करते हैं. हाल ही में मैंने न्यूयॉर्क में ५००० लोगों के सामने गाया. वह किसी तरह का कोई उत्सव वगैरह था. मैंने आयोजकों से पूछा कि आप मुझसे यहाँ गवाना चाहते हैं जहां लोग शापिंग और खाने में व्यस्त हैं तो वे बोले कि आप को अपने गाने की ताक़त का अन्दाज़ा नहीं है. आप बस शुरू करिए. मैंने गाना शुरू किया और सारे लोग सारे काम छोड़ कर ख़ामोशी से गाना सुनने लगे.

क्या आपको इस बात से आश्चर्य होता है कि हमारे पास आज भी मन्ना डे का कोई क्लोन नहीं है जबकि कई लोगों ने रफ़ी और किशोर की आवाज़ की नक़ल कर ली है?

देखिये, इसमें मेरी कोई गलती नहीं! आवाज़ तो खुदा की देन होती है, और उसे सुधारने के लिए मैंने मेहनत भर की है. मैं आपको बताना चाहूँगा कि हाल ही में मैंने एक मराठी युवा को अपने खासे मुश्किल गानों को गाते सुना  कि मैं दंग रह गया. लागा चुनरी में दागतो उसने इतनी ख़ूबसूरती से गाया कि मैं भी हक्का बक्का बैठा रह गया. मैं समझता हूँ मेरी आवाज़ और मेरी ख़ास शैली ने मुझे अपने लिए एक जगह बना पाने में मदद डी और आमतौर पर उसकी नक़ल करना मुश्किल होता होगा.

आज के संगीत के बारे में आप क्या सोचते हैं? और आपने फिल्मों में गाना बंद क्यों कर दिया है?

क्या आज आप एक भी ऐसे कम्पोज़र की तरफ इशारा करके कह सकते हैं कि वह मेरे ज़माने के संगीतकारों के कैलिबर का है या जानता है कि वह कर क्या रहा है? संगीत के क्षेत्र में जो भी हो रहा है वह बेहद अस्वास्थ्यकर है. म्यूजिक वीडियोज़ का कमाल है कि जो चाहे गायक बन सकता है सो यह तो अच्छी बात हुई है चाहे आपको गाना न भी आता हो आप गा सकते हैं. हर कोई गा रहा है. जब मैं तो सीटी बजा रहा था, भेलपूरी खा रहा था, तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूंजैसे गाने बनने लगें तो आप क्या उम्मीद रख सकते हैं? यहाँ तक कि क्षेत्रीय संगीत भी बॉलीवुड संगीत का क्लोन बनता जा रहा है. मैं समझता हूँ कि आमिर खान और यश चोपड़ा के अलावा मुझे कोई भी ऐसी फ़िल्में बनाता नज़र नहीं आ रहा जिनके लिए अच्छे संगीत की ज़रुरत हो. गायकों के तौर पर मुझे सोनू निगम, अलका याग्निक और सुनिधि चौहान अच्छे लगते हैं लेकिन उन्हें वैसा संगीत नहीं मिल रहा जो उनकी प्रतिभा का पूरा इस्तेमाल कर सके.


मैं अब भी गाता हूँ और चुनिन्दा शोज़ करता हूँ. मेरा स्वास्थ्य ठीक है, मेरी दोनों बेटियाँ शानदार गायिकाएं हैं और उन्होंने इंडस्ट्री में न जाने का रास्ता चुना. उन्होंने लता और आशा के बीच का गलाकाट संघर्ष देखा और वह उन्हें भाया नहीं. दोनों प्रोफेशनल्स हैं. दरअसल मेरी बड़ी बेटी कैलिफोर्निया के सन माइक्रोसिस्टम्स में काम करती है. मेरी पत्नी बहुत बेहतरीन है जिसे मैं ख़ूब प्यार करता हूँ और एक अनुशासित जीवन जीता हूँ. सबसे बड़ी बात मेरे लिए यह है कि इतने सारे लोग उस संगीत को पसंद करते हैं जिस पर मेरा विश्वास रहा और वे मेरे गीत सुनने को आते हैं. मेरे लिए इतना बहुत है.

3 comments:

मुनीश ( munish ) said...

श्रद्धांजली ।मन्ना डे तो चले गए लेकिन उनके तमाम क़द्रदान नहीं जानते कि उनके नाम का मतलब क्या है । लेकिन आज तो उन्हें जानना चाहिए कि उनका नाम माना ड्यू से प्रेरित था जिसका ज़िक्र बर्तनान्वी शायर कीट्स ने अपनी अमर कविता -ला बैले दाम सान्स मर्सी-La Belle Dame sans Merci - में किया है । माना वो अमृत सरीखा दैवी आहार था जो ख़ुदा ने इस्त्राइलियों को दिया बताते हैं । लेकिन कविता में उसकी एक बूँद भर का ज़िक्र है “roots of relish sweet/And honey wild, and manna dew.” डे तो खैर उऩका सरनेम था ही लेकिन इस नाम की प्रेरणा कीट्स की यही कविता थी ऐसा अंग्रेज़ी विभाग के अध्यक्ष बजाज साहब ने पोयट्री की कक्षा में एक बार बताया था । मैंने तुमको बता दिया । क्या गुनाह कर दिया कोई ?

Ashok Pande said...

क्या बात है मुनीश भाई!

... She found me roots of relish sweet,
And honey wild and manna-dew;
And sure in language strange she said,
'I love thee true.

मुनीश ( munish ) said...

आपने अवश्य हिमालयी कंदराओँ में मिलने वाली ब्राह्मी बूटी का जाने-अनजाने भरपूर सेवन किया है अशोक भाई क्योंकि ये पूरी पंक्तियाँ तो मुझे याद नहीं आके देवैं थीं बस उतनी सी याद थी जो कह डाली । अब तो यही कहना है कि मै से मीना से ना तो साकी से ना ही पैमाने से जी बहलता है मिरा आपी के आ जाने से ।