Friday, October 18, 2013

फ्रीदा काहलो पर गुआदालूपे रिवेरा की किताब से कुछ हिस्से – १

ब्लू हाउस के पीछे का बरामदा

अपने बगीचे में फ़्रीदा

अपने कैक्टस गार्डन में पालतू कुत्ते के साथ 

ला मारचान्ता, कोयोकान की बाज़ार में एक फूल बेचने वाली
जो फ़्रीदा को उसके मनपसन्द फूल मुहैय्या कराया करती थी. 

(इस पोस्ट के सन्दर्भ को ठीक से समझने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें - फ़्रीदा काहलो की रसोई)

सान आन्हेल छोड़कर कोयाकान में बस जाने का फैसला करने के बड फ़्रीदा और दिएगो ने पहला काम यह किया किया कि अपने घर के बाहर गहरा नीला रंग करवा लिया. यह नीला रंग बुरी आत्माओं को घर से दूर रखने में मुफीद माना जाता था. यह घर एक आरामदेह कस्बाई घर का अहसास दिया करता था – ख़ास तौर पर इस वजह से भी कि घर के भीतर तमाम तरह के पशु-पक्षी पाले गए थे और पेड़-पौधों की बहुतायत थी. असंख्य रंगों वाले फूलों, सतत चहचहाने वाली चिड़ियों और तोतों और पालतू बिल्लियों और कुत्तों और फुलान्ग चांग नाम के एक पालतू स्पाइडर बन्दर से नहीं बल्कि फ़्रीदा की उपस्थिति से ऐसा हो पाना संभव हुआ कि कोयाकान के ब्लू हाउस को एक व्यक्तित्व मिला और एक आवाज़ हासिल हुई.

लोग ज़्यादातर रसोई में जुटते थे. वहीं फ़्रीदा घर में काम करने वालों से मिलकर रोज़मर्रा के काम निबटाया करती. जैसा आपने पिछली एक पोस्ट में पढ़ा था पीली टाइल्स से लेकर पीले ही रंग की लकड़ी की शैल्फ तक इस रसोई में लगी हर चीज़ टिपिकल मैक्सिकी थी. इन चीज़ों को फ़्रीदा और दिएगो ने देश भर में घूमते-घामते इकठ्ठा किया था – ओआक्साका के मिट्टी के बरतन, सांता क्लारा से तांबे की केतलियाँ, गूआदालाहारा, पुएब्ला और गूआनाहूआतो से लाए गए कप,सुराहियाँ और घड़े. धीरे धीरे इस रसोई में मैक्सिको भर के सबसे प्रतिभाशाली शिल्पकारों की कृतियाँ इकठ्ठा होती गईं.

अपनी “मैक्सिकी” पहचान को बढ़-चढ़ कर प्रदर्शित करने में फ़्रीदा दिएगो से कहीं आगे निकल चुकी थी. इसमें कुछ भी नया नहीं था क्योंकि बचपन से ही फ़्रीदा और उसकी बहनें “ला इन्दीयादा” ज़बान के सारे जुमलों से वाकिफ थी. “ला इन्दीयादा” का प्रयोग निर्धन लोगों के लिए एक गाली की तरह इस्तेमाल किया जाता था.  

मैं अगस्त १९४२ में थोड़े से सामान के साथ कोयाकान पहुँची. मैं एक टीनएजर भर थी. मुझे फ़्रीदा रसोई में मिली. सदा की तरह उसकी पोशाक ने मुझे हैरान कर दिया. उसने लाल और पीली कढ़ाई वाला एक काला हुईपिल पहना था और फूलों के डिजायन वाली एक मुलायम सूती स्कर्ट जो उसके चलना शुरू करते ही जैसे जीवित हो जाती थी. उसकी हेयरस्टाइल से लेकर उसकी पोशाक की किनारी तक हरेक चीज़ पर एक आवारा ख़ुशी सांस ले रही थी जो रसोई में काम करने वाली यूलालिया की बातों का मसखरी से जवाब दिए जाने के कारण और भी जीवंत हो जाती थी.

फ़्रीदा ने मुझे और मेरी बहन रूथ दोनों को बेइन्तहा प्यार दिया. वह उसे चापो और मुझे पीको (या पीकीता) कहती थी. हमारे पापा भी हमें इन्हीं नामों से पुकारते थे. हम बेहद नज़दीकी थे और अपनी देह और आत्मा में हमसे थोड़े ही साल बड़ी होने के बावजूद फ़्रीदा हमारा ऐसे ख़याल रखती थी मानो उसने ही हमें जन्म दिया हो.


(जारी)

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