Monday, November 11, 2013

एक घेरा बिना अन्त और बिना ईश्वर का


येहूदा आमीखाई की कुछ कविताओं के अनुवाद आप इन दिनों लगातार पढ़ रहे हैं. इस क्रम में में आज में उनकी एक कविता रीपोस्ट कर रहा हूँ.

बम का व्यास

- येहूदा आमीखाई


तीस सेन्टीमीटर था बम का व्यास
और इसका प्रभाव पड़ता था सात मीटर तक
चार लोग मारे गए, ग्यारह घायल हुए
इनके चारों तरफ़ एक और बड़ा घेरा है - दर्द और समय का
दो हस्पताल और एक कब्रिस्तान तबाह हुए
लेकिन वह जवान औरत जिसे दफ़नाया गया शहर में
वह रहनेवाली थी सौ किलोमीटर से आगे कहीं की
वह बना देती है घेरे को और बड़ा
और वह अकेला शख़्स जो समुन्दर पार किसी 
देश के सुदूर किनारों पर
उसकी मृत्यु का शोक कर रहा था -
समूचे संसार को ले लेता है इस घेरे में

और अनाथ बच्चों के उस रुदन का तो मैं
ज़िक्र तक नहीं करूंगा
जो पहुंचता है ऊपर ईश्वर के सिंहासन तक 
और उससे भी आगे
और जो एक घेरा बनाता है बिना अन्त 
और बिना ईश्वर का.

6 comments:

मुनीश ( munish ) said...

जितना मेरा सीमित ज्ञान है उसके आधार पर ये दावे से कहता हूँ कि इस्राइल का दर्द , यहूदियों की पीड़ा को हिन्दी मंच पर कहीं मरहम नसीब होता है तो बस कबाड़खाना पर । बहुधा लोग अरबों की तरफ़दारी में इतने गिर जाते हैं कि इस महादेश की पीड़ा और सरोकारों को भी नज़रअंदाज़ करते हैं । येहुदा बोलचाल की हिब्रू में लिखने वाले पहले कवि कहाते हैं और उन्हें हमसे मिलाने के लिए आपका जितना शुक्रिया अदा किया जाए वो कम होगा लेकिन फिर कहता हूँ कि पढ़ने लिखने वाली बिरादरी में बहुत कम हैं जो इस्राइल की पीड़ा को समझ पाते हैं ।

hillwani said...

आते वहीं से हों लेकिन अमीखाई किसी इस्राएली देश या दुर्भावना के कवि नहीं हैं मुनीश, मेरा विनम्र मतभेद है आपसे, और कबाड़ख़ाना इस अतिशय समय की वेदना और इस अतिशय समय की अगर कहीं कुछ ख़ुशियां हैं तो उन्हें साझा करता है. वो इस्राएल का मंच तो कतई नहीं है.
-शिवप्रसाद जोशी

मुनीश ( munish ) said...

...ओह , जाकी रही भावना जैसी । लेकिन आपने यक़ीनन मेरा दिल तोड़ दिया जोशी जी । पता नहीं सजातीय लोगों का ही मुझसे क्यों मतभेद रहता है चाहे वो विनम्र ही क्यों न हो । मेरा तो जाति प्रथा से ही विश्वास उठ गया इन्हीं वजहों से ।

hillwani said...

अरे मुनीशजी प्लीज़ आप ऐसा मत कहें. आपके ज्ञान और जानकारी का मैं बहुत कायल हूं. और सम्मान करता हूं. बस थोड़ा सा अटपटा लगा तो सोचा लिखूं. लेकिन है ये फिसलन वाली जगह. आपकी टिप्पणियां हमेशा बिना किसी दुराव छिपाव के होती हैं.वरना तो आप जानते ही हैं हिंदी का संसार कितना लिज़लिज़ा है. जाति के बाहर अ-जाति और प्रथा के बाहर अ-प्रथा में आप हमेशा मेरे मित्र बने रहेंगे. आप हम पर विश्वास रख सकते हैं.
सादर
शिवप्रसाद जोशी

Jitendra samant said...

'Kabadkhana' ajkal amar ujala me bhi aa rha h.
Jitendra samant ,almora

Jitendra samant said...

Maza ata h 'kabadkhana padh ke