Tuesday, May 6, 2014

मैं दुआ करता हूँ काश हर बेटे को ऐसी माँ मिले - कादर ख़ान का एक लंबा साक्षात्कार - 3

(पिछली क़िस्त से आगे)


कॉनी हाम – पढ़ाई के लिए ऐसी इच्छा उनके भीतर कहाँ से आई?

कादर ख़ान – मुझे नहीं मालूम. मेरे लिए वो एक फ़रिश्ता थीं. मैं दुआ करता हूँ काश हर बेटे को ऐसी माँ मिले. उसने मुझे ज़िन्दगी में सब कुछ दिया. मेरे कहने का मतलब दुनियावी चीज़ों से नहीं है, यानी मैं जो कुछ भी हूँ, जो कुछ भी बन सका हूँ, वह मेरी माँ और मेरे पिता के कारण संभव हुआ. मेरे वालिद बहुत कमज़ोर आदमी थे. बेहद ग़रीब. वे बहुत पढ़े-लिखे थे. उन्हें दस तरह की फ़ारसी और आठ तरह की अरबी का ज्ञान था.

कॉनी हाम – उन्होंने यह सब कहाँ सीखा?

कादर ख़ान – काबुल में. उन्होंने वहाँ कोई स्कूल ज्वाइन किया था. उनकी हस्तलिपि शानदार थी. लेकिन पढ़े-लिखे लोग पैसे नहीं कमा पाते. जब वे बम्बई आये तो एक मस्जिद में मौलवी बन गए. वहाँ वो दूसरों को अरबी सिखाया करते थे – अरबी व्याकरण, फ़ारसी, उर्दू. लिकं उन्हें बदले में कुछ नहीं मिलता था – बस चार या पांच या छः रूपये एक महीने के.

मेरे सौतेले पिता

गरीबी की वजह से मेरे माँ-बाप का साथ चल नहीं सका. मेरे वालिद घर की ज़रूरतें पूरी नहीं कर पाते थे. घर में हमेशा एक तनाव बना रहता था. तो वो दोनों अलग हो गए. मैं कोई चार साल का था जब मेरे माँ-बाप का तलाक हुआ. तब मेरे नाना मेरे मामा के साथ आये और उन्होंने कहा “एक जवान औरत ऐसी गंदी जगह में बिना पति के नहीं रह सकती. तुम्हे शादी करनी होगी.” और उन्होंने मेरी माँ की फिर से शादी करा दी. सो आठ साल की आयु से मैंने जीवन को एक माँ और दो पिताओं के साथ गुज़ारना शुरू किया – एक मेरे असली पिता एक सौतेले. मेरे माता-पिता अलग हो चुके थे पर दोनों के मन में एक दूसरे के लिए सहानुभूति थी. हर कोई जानता था कि उनका अलगाव गरीबी के कारण हुआ है. माहौल ने उन्हें अलग होने पर विवश किया था. वर्ना उनके अलग हो जाने का कोई करण न था. मेरे मन में अपनी माँ के लिए बेतरह मोहब्बत थी पर अपने सौतेले पिता के लिए उतनी ही बेपनाह नफ़रत. वह किसी ड्रामा या स्क्रीनप्ले के सौतेले बाप जैसे थे – कठोर दिल वाले. एक दफ़ा मेरा नाटक ‘लोकल ट्रेन’ राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में पहुंचा. हमने बेस्ट प्ले, बेस्ट राइटर और बेस्ट एक्टर के अवार्ड्स जीते. मैं इनिनामों को माँ को दिखाने की नीयत से घर लाया. मेरे सौतेले पिता उस दिन मुझसे बात करने के मूड में नहीं थे. उन्होंने ट्राफी को देखना था और वे आगबबूला होकर मुझे पीटने लगे – उन्होंने पीट पीट कर मुझे नीला बना दिया और लतियाते हुए घर से बाहर निकाल दिया. मैं अपने संस्थान गया और प्रिंसिपल के दरवाज़े पर बैठकर उनसे बातचीत की. वे बोले, “अगर तू चाहो तो स्टाफ क्वार्टर्स में रह सकते हो..” उन्होंने मुझे बांस की बनी एक खटिया, बिस्तर, कम्बल और तकिया दिया. “मैं यही तुम्हारी मदद कर सकता हूँ” वे बोले. मैंने वहाँ रहना शुरू कर दिया.

कॉनी हाम – तब आप कितने साल के थे?

4 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

अगली किस्त का इंतजार है :)

kuldeep thakur said...

-सुंदर रचना...
आपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 08/05/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...

Dr. Shashi Singhal said...

कादर खान के बारे में इतनी जानकारी नही थी मगर अशोक पांडे जी की रिपोर्ट पढी .. अच्छी लगी ....अगली किश्त का इंतजार है .....

मुनीश ( munish ) said...

आज ही जानीं ये सारी बातें । कमाल के इंसान निकले ये । ये इंटरव्यू प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद ।