कल
रात हिन्दी के अग्रणी और मेरे प्रिय कवि आलोक धन्वा से लम्बी बातचीत हुई. जैसा
अक्सर होता है उनकी बातचीत एक मिनट में तीस-चालीस पड़ाव पार कर जाती है, एक सूत्र
से दूसरा फिर तीसरा फिर किसी कविता की कोई पंक्ति ...
बातों
बातों में निदा फ़ाज़ली का ज़िक्र चला आया. वे बताने लगे कि अभी अभी बीती ईद पर उनके
पास निदा साहब का एक दोहा एसएमएस की शक्ल में पहुंचा. मैंने उन्हें रोककर आधी रात
को कागज कलम खोजा और उसे नोट किया.
ज़रा
गौर फरमाएं –
झूठी
सारी सरहदें, धोखा सब तकसीम*
दिल्ली
से लाहौर तक कड़वे सारे नीम
क्या
बात है निदा साब!
(तकसीम: बंटवारा)
2 comments:
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