Wednesday, August 13, 2014

दिल्ली से लाहौर तक कड़वे सारे नीम


कल रात हिन्दी के अग्रणी और मेरे प्रिय कवि आलोक धन्वा से लम्बी बातचीत हुई. जैसा अक्सर होता है उनकी बातचीत एक मिनट में तीस-चालीस पड़ाव पार कर जाती है, एक सूत्र से दूसरा फिर तीसरा फिर किसी कविता की कोई पंक्ति ...

बातों बातों में निदा फ़ाज़ली का ज़िक्र चला आया. वे बताने लगे कि अभी अभी बीती ईद पर उनके पास निदा साहब का एक दोहा एसएमएस की शक्ल में पहुंचा. मैंने उन्हें रोककर आधी रात को कागज कलम खोजा और उसे नोट किया.

ज़रा गौर फरमाएं –

झूठी सारी सरहदें, धोखा सब तकसीम*
दिल्ली से लाहौर तक कड़वे सारे नीम


क्या बात है निदा साब! 

(तकसीम: बंटवारा)

2 comments:

केवल राम said...

कृपया आप अपने इस महत्वपूर्ण हिन्दी ब्लॉग को ब्लॉगसेतु ब्लॉग एग्रीगेटर से जोड़कर हमें कृतार्थ करें ... !!! धन्यवाद सहित

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सुशील कुमार जोशी said...

बहुत खूब :)