दोस्तो! क्या-क्या दिवाली में निशात-ओ-ऐश है
सब मुहैया है ज इस हंगाम के शायान हैं शै
इस तरह हैं कूच ओ बाज़ार पुर नक्श-ओ-निगार
हो यान हुस्ने निगारिस्तां की जिन से ख़ूब रे
गर्मजोशी अपनी बाजाम चिरागां लुत्फ़ से
क्या ही रोशन कर रही है हर तरफ़ रोग़न की मै
मेल-ए-सैर-ए-चिरागां नख्ल हर जा दम-ब-दम
हासिल-ए-नज़्ज़ारा हुस्न-ए-शमा रो यां पे-ब-पे
आशिकां कहते हैं माशूकों से बा इज्जो नियाज़
है अगर मंज़ूर कुछ लेना तो हाज़िर हैं रुपे
गर मुकर्रर अर्ज़ करते हैं तो कहते हैं वो शोख़
हमसे लेते हो मियाँ तकरार-ओ-हुज्जत ताबके
कहते हैं अहले क़िमार आपस में गर्म इख्तिलात
हम तो डब में सौ रुपे रखते हैं तुम रखते हो कै
जीत का पड़ता है जिसका दांव वह कहता है यूं
सू-ए-दस्त-ए-राह है मेरे कोई फ़रखुन्दा पे
है दसहरे में भी यूं गो फ़रहत-ओ-ज़ीनत नज़ीर
पर दिवाली भी अजब पाकीज़ातर त्यौहार है
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