Tuesday, October 7, 2014

काबा नहीं बनता है तो बुतख़ाना बना दे


जनाब असद ज़ैदी की फ़ेसबुक वॉल से मालूम पड़ा कि आज से ठीक सौ बरस पहले बेग़म अख़्तर का जन्म हुआ था. वे सात सितम्बर १९१४ को जन्मी थीं. फिलहाल असद जी को इस बात की याद दिलाने का शुक्रिया कहता हुआ मैं बतौर निशानी जल्दी-जल्दी फिलहाल बेग़म की गाई सरदार अहमद खान उर्फ़ बेहज़ा लखनवी की लिखी एक ग़ज़ल आपके सामने पेश करता हूँ –



दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे
वरना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे

ऐ देखने वालो मुझे हँस-हँस के न देखो
तुमको भी मोहब्बत कहीं मुझसा न बना दे

मैं ढूँढ रहा हूँ मेरी वो शमा कहाँ है
जो बज़्म की हर चीज़ को परवाना बना दे

आख़िर कोई सूरत भी तो हो ख़ाना--दिल की
काबा नहीं बनता है तो बुतख़ाना बना दे

' बेहज़ा' हर एक गाम पे एक सज़दा--मस्ती
हर ज़र्रे को संग--दर--जानाना बना दे

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