Tuesday, November 11, 2014

ज्ञानरंजन का इलाहाबाद – ८


(पिछली क़िस्त से आगे) 

जो कूए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले

इलाहाबाद में और कॉफ़ी हॉउस में मेरी सबसे कम मुलाक़ात मलयज से है, पर जितनी है, वह गहरी और सघन है. दो-एक बार उनके पुराने इलाहाबाद के घर की भी याद आती है. टाट-पट्टी से निकलकर जैसे कोई तेजस्वी आणुविक विज्ञान तक पहुँच गया हो, मलयज कुछ इस तरह के नागरिक और प्रतिभा थे. मलयज कॉफ़ी हॉउस कभी-कभे आते थे. पखवारे या सप्ताह में उनका एक दिन था शायद. और हम कैलेण्डर के मुताबिक़ नहीं चलते थे, इसलिए कम मिले मलयज से. कॉफ़ी हॉउस में वे अकेले कोने में बैठे होते. हम ही उठकर उन तक जाते थे. वे कभी उठकर हम तक नहीं आए. शायद ऐसा करते हुए वे थक जाएंगे, यह लगता था. वे कुर्सी पर जो उन दिनों अच्छी-ख़ासी बड़ी कुर्सी होती थी एक खरगोश की तरह दुबके होते थे. वे दुर्बल, कोमल, शालीन, धीमे, गुमसुम, लापता औएर कॉफ़ी हॉउस के लिए अटपटे थे. घर के लोगों से, उनके पिता और बहनों से, किसी से उनकी संगती नहीं बैठती थी. मलयज के बारे में, उनकी काय से, आज जब कोई निष्कर्ष निकालता हूँ तो लगता है वे बेचैन बहुत थे. उनमें इसके बावजूद साधना का कठोर धीर था. इलाहाबाद में मलयज ने अपने प्रारम्भिक दौर को साध लिया था. उन्होंने अपना रास्ता भी तय कर लिया था या बना लिया था. जब वे दिल्ली नौकरी करने गए तो प्रस्फुटित होकर ही गए थे. मलयज के असामयिक निधन से हिन्दी में कुछ लोगों को राहत मिली होगी क्योंकि उनमें जिस तरह से नए रेशे फूट रहे थे वे साम्राज्यवादी आलोचना के नूतन छद्म बल्कि फासिस्ट गद्य का भी सामना करनेवाले थे. मलयज को उन दिनों प्रीडिक्ट नहीं किया जा सकता था. इलाहाबाद कविता की ही तरह अनूठे गद्य के लिए भी जाना जाएगा. महादेवी का गद्य, रघुवंश की हरी घाटी, भुवनेश्वर के नाटकों में गद्य, रामनाथ सुमन के पोलिटिकल बायोग्राफी का गद्य,  साही, बलवंत सिंह और अमरकांत के साथ नरेश मेहता के ‘यह पथ बंधु था’ के कुछ अनमोल गद्य के हिस्से भूले नहीं जा सकते. मलयज का गद्य पठनीय, समर्थ, रचना-शैली की मौलिकता के लिए स्मरणीय होगा. व्यावहारिक आलोचना उनका प्रारम्भिक या बुनियादी मन नहीं था. सरोज स्मृति पर लिखकर मलयज ने दिग्गज आलोचकों को अपनी झलक दिखलाई. उनका यह काम मुझे रामविलास शर्मा के दूसरे भाग से बढ़कर लगता है. मलयज आलोचना के चेहरे को बदल रहे थे. नैतिक स्खलन के इस घनघोर समय में उन्होंने अशोक वाजपेयी पर जो टिप्पणियाँ कीं वैसा साहसपूर्ण सच, सुराज और स्वायत्तता का ढोल पीटने वालों के पास उपलब्ध नहीं है.


(जारी)

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